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वृंद
1643 - 1735 जोधपुर, राजस्थान
रीतिकालीन नीतिकवि। सूक्तिकार के रूप में स्मरणीय।
दुष्ट न छांड़ै दुष्टता पोखै
संत और कवि वृन्द के दोहे दोहावली वृंद Sant Kavi Vrind Ke Dohe Dohawali
कहुँ अवगुन सोइ होत
Sant Kavi Vrind Ke Dohe Dohawali संत और कवि वृन्द के दोहे दोहावली वृंद
अन−उद्यमही
वृन्द के दोहे अर्थ सहित
मधुर बचन तैं जात मिट उत्तम जन अभिमान।
वृन्द के दोहे अर्थ
एकहि गुन ऐसौ भलौ जिहिँ अवगुन छिप जात। वृन्द के दोहे
मूरख गुन समझै नहीं तौ न गुनी मैं चूक।
संच्यौ किहिं का वृन्द के दोहे व्याख्या सहित
अपनी पहुँच बिचारि कैं करतब करियै ठौर।
अति परचै तैं होत है अरुचि अनादर भाय।