है नज्द में सुकूत हवाओं को क्या हुआ
लैलाएँ हैं ख़मोश दिवाने किधर गए
उजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनी
सूने हैं कोहसार दिवाने किधर गए
वो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुई
वो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए
दिन रात मैकदे में गुज़रती थी ज़िन्दगी
'अख़्तर' वो बेख़ुदी के ज़माने किधर गए
वीराँ हैं सहन-ओ-बाग़ बहारों को क्या हुआ
वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए
ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
वो कभी मिल जाएँ तो / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
वादा उस माह-रू के आने का / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
किस को देखा है ये हुआ क्या है / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
झूम कर बदली उठी और छा गई / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
ऐ दिल वो आशिक़ी के / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
यारो कू-ए-यार की बातें करें / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal