यार जुलाहे गुलज़ार संग्रह
YAR ZULAHE GULZAR SANGRAH
YAR ZULAHE GULZAR SANGRAH
gulzar
आज यह नाम सफलता की उस बलंदी के लिए जाना जाता है जहाँ तक जाने के लिए हर कोई बेताब खड़ा है। गुल्ज़ार उन चंद नामी शायरों में से एक हैं जिन्होंने अपने गीतों, नज़्मों और कहानियों के लिए ख़्याति पायी। कुछ आगे ज़िक्र करूँ इससे पहले बताना चाहूँगा आज लगभग हर हिन्दी स्कूल में करायी जाने वाली प्रार्थना हम को मन की शक्ति देना दाता, मन विजय करें गुलज़ार का लिखा एक गीत है जो फ़िल्म गुड्डी से है। बच्चों के लिए लिखी गयी रचनाएँ जितनी गुलज़ार की सबकी ज़बाँ पर चढ़ीं शायद ही और कोई इतनी सरलता से हर नन्हें दिल में अपनी जगह बना पाया हो। अगर हम बात करें गुल्ज़ार द्वारा लिखे बाल-गीतों की तो सबसे पहले जंगल बुक का टायटल गीत जंगल-जंगल बात चली पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है याद आता है, और भी हैं जैसे एलिस इन वन्डर लैण्ड का टिप-टिप टोपी-टोपी, काबुली वाला का आया झुन्नू वाला बाबा और अन्य कई फ़िल्मी गीत जैसे फ़िल्म मकड़ी का ए पापड़वाले पंगा न ले।
गुलज़ार ने जब फ़िल्मी दुनिया में अपना स्थान बनाना चाहा तो उन्हें मौक़ा मिला बिमल राय जैसे महान फ़िल्मकार के साथ काम करने का, जिनसे उन्होंने निर्देशन का काम भली तरह समझा। फिर कोमल, सफल और सार्थक गीत लिखे, उनका हाथ यहीं तक सीमित नहीं रहा, आपने कई फ़िल्मों के लिए कथाएँ, पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। जब फ़िल्म निर्देशन में उतरे तो ऐसी संवेदनशील, मार्मिम और हृदयस्पर्शी फ़िल्मों का निर्माण किया जिन्होंने फ़िल्म जगत में एक आन्दोलन ला दिया कि फ़िल्में सिर्फ़ चटपटी नहीं सादे-साधारण लोगों के जीवन पर आधारित भी हो सकती हैं और फ़िल्म देखने वालों के दिल में अपना नाम दर्ज़ करा सकने में गुल्ज़ार सफल होते चले गये और बस सफलता उनके पंख बन गयी जो कभी कटे नहीं और आज भी आकाश में दूर तक उड़ने को सदा तत्पर हैं। कुछ फ़िल्मों के नाम हैं जो सदा याद की जाती है और याद रखी जायेंगी, मेरे अपने, अचानक, परिचय, आँधी, मौसम, ख़ुशबू, मीरा, किनारा, नमकीन, लेकिन, लिबास, माचिस, इत्यादि।
गुलज़ार ने फ़िल्म अभिनेत्री राखी से शादी की और उनकी एक बेटी है मेघना
मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुनतर की
देख नहीं सकता है कोई
मैंने तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
शहतूत की शाख़ पे बैठा कोई
बुनता है रेशम के तागे
लम्हा-लम्हा खोल रहा है
पत्ता-पत्ता बीन रहा है
एक-एक सांस बजा कर सुनता है सौदाई
एक-एक सांस को खोल के अपने तन पर लिपटाता जाता है
अपनी ही साँसों का क़ैदी
रेशम का यह शायर इक दिन
अपने ही तागों में घुट कर मर जाएगा
मुझसे इक नज़्म का वादा है,
मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में,
जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए चाँद,
उफ़क़ पर पहुंचे
दिन अभी पानी में हो,
रात किनारे के क़रीब
न अँधेरा, न उजाला हो,
यह न रात, न दिन
ज़िस्म जब ख़त्म हो
और रूह को जब सांस आए
मुझसे इक नज़्म का वादा है मिलेगी मुझको
देखो, आहिस्ता चलो और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच सँभल कर ज़रा पाँव रखना
ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख़्वाब टूटे न कोई जाग न जाए देखो
जाग जाएगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा
वो जो शायर था चुप सा रहता था
बहकी-बहकी सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था
गूंगी ख़ामोशियों की आवाज़ें
जमा करता था चाँद के साए
गीली-गीली सी नूर की बूंदें
ओक़ में भर के खड़खड़ाता था
रूखे-रूखे से रात के पत्ते
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही वो अजीब सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोडी चूमा करता था
चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है
रात भर सर्द हवा चलती रही
रात भर हमने
अलाव तापा
मैंने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं
तुमने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े
मैंने जेबों से निकालीं सभी सूखी नज़्में
तुमने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले
अपनी इन आँखों से मैंने कई मांजे तोड़े
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकीं
तुमने पलकों पे नमी सूख गई थी सो गिरा दी
रात भर जो मिला उगते बदन पर हमको
काट के डाल दिया जलते अलाव में उसे
रात भर फूंकों से हर लौ को जगाये रखा
और दो जिस्मों के ईंधन को जलाये रखा
रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलगियाँ
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख़्तों की, छुपता हुआ
जिनके पीछे से
निकला चला जा रहा था वह सूरज
त'आक़ुब में था उसके मैं
गिरफ़्तार करने गया था उसे
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे है,
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म
अभी धड़कतें है दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगुला बन कर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को ले कर
कहीं तो अंजाम-ए-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो
बस्ता फ़ेंक के लोची भागा रोशनआरा बाग़ की जानिब
चिल्लाता: 'चल गुड्डी चल'
पक्के जामुन टपकेंगे'
आँगन की रस्सी से माँ ने कपड़े खोले
और तंदूर पे लाके टीन की चादर डाली
सारे दिन के सूखे पापड़
लच्छी ने लिपटा ई चादर
'बच गई रब्बा' किया कराया धुल जाना था'
ख़ैरु ने अपने खेतों की सूखी मिट्टी
झुर्रियों वाले हाथ में ले कर
भीगी-भीगी आँखों से फिर ऊपर देखा
झूम के फिर उट्ठे हैं बादल
टूट के फिर मेंह बरसेगा
गोल फूला हुआ ग़ुब्बारा थक कर
एक नुकीली पहाड़ी यूँ जाके टिका है
जैसे ऊँगली पे मदारी ने उठा रक्खा हो गोला
फूँक से ठेलो तो पानी में उतर जाएगा
भक से फट जाएगा फूला हुआ सूरज का ग़ुब्बारा
छन-से बुझ जाएगा इक और दहकता हुआ दिन
किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से ताकती हैं महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होती
जो शामें इनकी सोहबत मे कटा करती थी
अब अक्सर गुज़र जाती हैं कंप्यूटर के पर्दों पर
ऐसे में बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
उन्हें अब नींद मे चलने की आदत हो गयी है
जो क़दरें वो सुनाती थी कि जिनके सेल कभी मरते नहीं थे
वो क़दरें अब नज़र आती नहीं हैं घर में
जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधड़े उधड़े हैं
कोई सफ़हा पलटता हूँ तो एक सिसकी सुनाई देती है
कई लफ्ज़ो के माने गिर पड़े हैं
बिना पत्तो के सूखे तुंड लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई माइने नहीं उगते
ज़बां पर जो ज़ायक़ा आता था जो सफ़हा पलटने का
अब उंगली क्लिक करने से
बस एक झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है पर्दो पर
किताबो से जो ज़ाती राब्ता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी मे लेते थे
कभी घुटनो को अपनी रिहल की सूरत बना कर
नीम सजदे मे पढ़ा करते थे छुते थे जबीं
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइन्दा भी
मगर वो जो किताबो में मिला करते थे
सूखे फूल और महके हुए रुक़्क़े
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे
अब उनका क्या होगा?
वो शायद अब नहीं होंगे!!