Post date: Mar 02, 2018 11:49:59 AM
तेरी महफ़िल में यह कसरत कभी थी
हमारे रंग की सोहबत कभी थी
इस आज़ादी में वहशत कभी थी
मुझे अपने से भी नफ़रत कभी थी
हमारा दिल, हमारा दिल कभी था
तेरी सूरत, तेरी सूरत कभी थी
हुआ इन्सान की आँखों से साबित
अयाँ कब नूर में जुल्मत कभी थी
दिल-ए-वीराँ में बाक़ी हैं ये आसार
यहाँ ग़म था, यहाँ हसरत कभी थी
तुम इतराए कि बस मरने लगा ‘दाग़’
बनावट थी जो वह हालत कभी थी.