टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें
बुझते हुए ख़याल को ज़ंजीर क्या करें
अंधा सफ़र है ज़ीस्त किस छोड़ दें कहाँ
उलझा हुआ सा ख़्वाब है ताबीर क्या करें
सीने में जज़्ब कितने समुंदर हुए मगर
आँखों पे इख़्तिसार की तदबीर क्या करें
बस ये हुआ कि रास्ता चुप-चाप कट गया
इतनी सी वारदात की तश्हीर क्या करें
साअत कोई गुज़ार भी लें जी तो लें कभी
कुछ ओर अपने बाब में तहरीर क्या करें
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश Akram Nakkash Ghazal