Govardhan ki Sikhar Charu Par Chheetaswami kavita गोवर्धन की सिखर चारु पर
Govardhan ki Sikhar Charu Par Chheetaswami kavita गोवर्धन की सिखर चारु पर
गोवर्धन की सिखर चारु पर फूली नव मधुरी जाय।
मुकुलित फलदल सघन मंजरी सुमन सुसोभित बहुत भाय॥१॥
कुसुमित कुंज पुंज द्रुम बेली निर्झर झरत अनेक ठांय।
छीतस्वामी ब्रजयुवतीयूथ में विहरत हैं गोकुल के राय॥२॥
अष्टछाप के आठ कवियों में से एक हैं। इनका जन्म 1510 ई. के आसपास माना जाता है। ये मथुरा के पंडा थे तथा आरंभ में उद्दंड प्रकृति के थे। बाद में ये कृष्ण के अनन्य भक्त हो गए। विट्ठलनाथजी ने इन्हें दीक्षा दी। इन्हें ब्रजभूमि से अत्यंत प्रेम था। इनके स्फुट पद ही प्राप्त हैं, जिनमें कृष्ण की लीलाओं का सरस एवं संजीव वर्णन मिलता है।
धन्य श्री यमुने निधि देनहारी / छीतस्वामी
जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी / छीतस्वामी
सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल / छीतस्वामी
गोवर्धन की सिखर चारु पर / छीतस्वामी
आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय / छीतस्वामी
हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी / छीतस्वामी
जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे / छीतस्वामी
भोग श्रृंगार यशोदा मैया / छीतस्वामी
बादर झूम झूम बरसन लागे / छीतस्वामी
गुण अपार मुख एक कहाँ लों कहिये / छीतस्वामी
धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे / छीतस्वामी
भई अब गिरिधर सों पैहचान / छीतस्वामी