गेसू-ए-मुश्कीं में वो रू-ए-हसीं
अब्र में बिजली सी इक लहरा गई
आलम-ए-मस्ती की तौबा अल-अमाँ
पारसाई नश्शा बन कर छा गई
आह उस की बे-नियाज़ी की नज़र
आरज़ू क्या फूल सी कुम्हला गई
साज़-ए-दिल को गुदगुदाया इश्क़ ने
मौत को ले कर जवानी आ गई
पारसाई की जवाँ-मर्गी न पूछ
तौबा करनी थी के बदली छा गई
'अख़्तर' उस जान-ए-तमन्ना की अदा
जब कभी याद आ गई तड़पा गई
आह वो उस की निगाह-ए-मय-फ़रोश
जब भी उट्ठी मस्तियाँ बरसा गई
झूम कर बदली उठी और छा गई
सारी दुनिया पर जवानी आ गई
वो कभी मिल जाएँ तो / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
वादा उस माह-रू के आने का / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
किस को देखा है ये हुआ क्या है / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
झूम कर बदली उठी और छा गई / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
ऐ दिल वो आशिक़ी के / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal
यारो कू-ए-यार की बातें करें / अख़्तर शीरानी Akhtar Shirani Ghazal