घाव बड़े गहरे/हमरे हाकिम बहरे के बहरे
(जिसका हुकुम चले वह हाकिम, सुनवाई न
होने पर मजबूरों का पद-गायन)
गुल
गुलशन
गुलफ़ाम कहां!
हम तो
ग़ुलाम ठहरे!!
हाकिम
बहरे के बहरे!!!
किसके आगे दिल को खोलें,
कौन सुनेगा किस को बोलें,
किसे सुनाएं कड़वा किस्सा
बांटे कौन दर्द में हिस्सा?
कहने भर को लोकतंत्र है,
यहां लुटेरा ही स्वतंत्र है,
खाद नहीं बन पाई खादी
पनप नहीं पाई आज़ादी।
भर-भर के भरमाया हमको,
खादी खा गई दीन-धरम को,
भाई चर गए भाईचारा
तोड़ दिया विश्वास हमारा।
नेता अपने भोले-भाले
ऊपर भोले अन्दर भाले
डरते हैं अब रखवालों से
घायल हैं उनके भालों से।
घाव बड़े गहरे
हाकिम बहरे के बहरे।
गुल
गुलशन
गुलफ़ाम कहां!
हम तो
ग़ुलाम ठहरे!!
हाकिम
बहरे के बहरे!!!
लाश में अटकी आत्मा
(एक जीवन में कितनी ही बार मारा जाता है
आदमी, क्षमाभाव उसे जीवित रखता है)
आत्मा अटकी हुई थी लाश में,
लोग जुटे थे हत्यारे की तलाश में।
सबको पता था कि हत्यारा कौन था,
लाश हैरान थी कि हर कोई मौन था।
परिवार के लोगों के लिए
आत्महत्या का मामला था,
ऐसा कहने में ही कुछ का भला था।
अच्छा हुआ मर गया,
एक पोस्ट खाली कर गया।
अचानक पड़ोसियों में
सहानुभूति की एक लहर दौड़ी
उन्होंने उठाई हथौड़ी।
सारी कील निकालकर खोला ताबूत।
पोस्टमार्टम में एक भी नहीं था
आत्महत्या का सबूत।
उन्होंने मृतक के पक्ष में
चलाया हस्ताक्षर अभियान,
सारे पड़ोसी करुणानिधान।
काम हो रहा था नफ़ीस,
कम होने लगी लाश की टीस।
सबके हाथों में पर्चे थे,
पर्चों में मृतक के गुणों के चर्चे थे।
अजी मृतक का कोई दोष नहीं था,
आरोपकर्ताओं में
बिलकुल होश नहीं था।
हस्ताक्षर बरसने लगे,
लाश के जीवाश्म सरसने लगे।
और जब अंत में मुख्य हत्यारे ने भी
उस पर्चे पर हस्ताक्षर कर दिया,
तो लाश आत्मा से बोली—
अब इस शरीर से जा मियां!
तेरी सज्जनता के सिपाहियों ने
पकड़ लिया है हत्यारे को।
परकाया प्रवेश के लिए
ढूंढ अब किसी और सहारे को।
भविष्य का रास्ता साफ़ कर,
हत्यारों को माफ़ कर।
दोनों घरों में फ़रक है
(घर साफ़-सुथरा रखें तो आंगन
में ख़ुशियां थिरकती हैं।)
फ़रक है, फ़रक है, फ़रक है,
दोनों घरों में फ़रक है।
हवा एक में साफ़ बहे,
पर दूजे में है गन्दी,
दूजे घर में नहीं
गन्दगी पर कोई पाबंदी।
यहां लगता है कि जैसे नरक है।
दोनों घरों में फ़रक है।
पहले घर में साफ़-सफ़ाई,
ये घर काशी काबा,
यहां न कोई रगड़ा-टंटा,
ना कोई शोर शराबा।
इसी घर में सुखों का अरक है।
दोनों घरों में फ़रक है।
गंदी हवा नीर भी गंदा,
दिन भर मारामारी,
बिना बुलाए आ जातीं,
दूजे घर में बीमारी।
इस घर का तो बेड़ा ग़रक है।
दोनों घरों में फ़रक है।
गर हम चाहें
अच्छी सेहत,
जीवन हो सुखदाई,
तो फिर घर के आसपास,
रखनी है ख़ूब सफ़ाई।
साफ़ घर में ख़ुशी की थिरक है।
फ़रक है, फ़रक है, फ़रक है,
दोनों घरों में फरक है।
यारा प्यारा तेरा गलियारा
(एक सूफ़िया कलाम,
यार के गलियारे के नाम)
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में अम्बर उतरा
ऐसा सबद उचारा।
गलियारे में हल्ला है
पट शायद खुले तुम्हारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में उतरे तारे
झिलमिल झिलमिल सारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में ख़ुश्बू तेरी
उस ख़ुश्बू ने मारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में चूड़ी खनकी
समझा उसे इशारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में फूल खिला है
मैं भंवरा मतवारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में रंग भर गए
नैन चला पिचकारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में सब दुखियारे
मैं इकला सुखियारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में झलक दिखाई
भाग गया अंधियारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
गलियारे में धूप न आवै
रूप करै उजियारा,
यारा, प्यारा तेरा गलियारा।
छोड़ना
जब वो जीवित था
तो उसने मुझे
कई बार छोड़ा,
और मर कर
उसने मुझे
कहीं का नहीं छोड़ा,
क्योंकि मेरे लिए
कुछ भी नहीं छोड़ा।
वैसे
बहूत ऊंची-ऊंची छोड़ता था।
दरवाज़े पर घंटी
जैसे ही कोई
दरवाजे पर घंटी बजाता है
मैं हाथ में फाइल उठा लेता हूं।
ऐसा क्यों?
मुझे उससे नहीं मिलना होता है
तो कहता हूं- दुर्भाग्य है
अफसोस, मैं अभी-अभी
बाहर जा रहा हूं
फिर कभी मिलेंगे?
और अगर कोई ऐसा आए
जिससे आप मिलना चाहें?
तो कहता हूं
आइए आइए
क्या सौभाग्य है
अभी-अभी बाहर से लौटा हूं।