धन्य श्री यमुने निधि देनहारी / छीतस्वामी
जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी / छीतस्वामी
सुमिर मन गोपाल लाल सुंदर अति रूप जाल / छीतस्वामी
गोवर्धन की सिखर चारु पर / छीतस्वामी
आगे गाय पाछें गाय इत गाय उत गाय / छीतस्वामी
हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी / छीतस्वामी
जा मुख तें श्री यमुने यह नाम आवे / छीतस्वामी
भोग श्रृंगार यशोदा मैया / छीतस्वामी
बादर झूम झूम बरसन लागे / छीतस्वामी
गुण अपार मुख एक कहाँ लों कहिये / छीतस्वामी
धाय के जाय जो श्री यमुना तीरे / छीतस्वामी
भई अब गिरिधर सों पैहचान / छीतस्वामी
(उत्सव भोग आये तब)
लाल ललित ललितादिक संग लिये बिहरत वर वसन्त ऋतु कला सुजान।
फूलन की कर गेंदुक लिये पटकत पट उरज छिये हसत लसत हिलि मिलि सब सकल गुन निधान॥१॥
खेलत अति रस जो रह्यो रसना नहिं जात कह्यो निरखि परखि थकित भये सघन गगन जान।
छित स्वामी गिरिवरधर विट्ठल पद पद्म रेनु वर प्रताप महिमा ते कियो कीरति गान॥२॥