परी कुपथ कंटक आपदा घनेरी।
नैक ही न पावति भजि भजन सेरी॥४॥
दंभके आरंभ ही सतसंगति डेरी।
करै क्यों गदाधर बिनु करुना तेरी॥५॥
रोपी आइ पास-पासि दुरासा केरी।
देत वाहीमें फिरि फिरि फेरी॥३॥
काम लोभ आदि ये निरदय अहेरी।
मिलिकै मन मति मृगी चहूँधा घेरी॥२॥
कबै हरि, कृपा करिहौ सुरति मेरी।
और न कोऊ काटनको मोह बेरी॥१॥
सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि / गदाधर भट्ट
कबै हरि, कृपा करिहौ सुरति मेरी / गदाधर भट्ट
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके / गदाधर भट्ट
दिन दूलह मेरो कुँवर कन्हैया / गदाधर भट्ट
सखी, हौं स्याम रंग रँगी / गदाधर भट्ट
नमो नमो जय श्रीगोबिंद / गदाधर भट्ट
है हरितें हरिनाम बड़ेरो / गदाधर भट्ट
झूलत नागरि नागर लाल / गदाधर भट्ट
हरि हरि हरि हरि रट रसना मम / गदाधर भट्ट
जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक / गदाधर भट्ट
श्रीगोबिन्द पद-पल्लव सिर पर बिराजमान / गदाधर भट्ट
आजु ब्रजराजको कुँवर बनते बन्यो / गदाधर भट्ट