कोटि कंदर्प दर्पापहर लावन्य धन्य
बृंदारन्य भूषन मधुर तरु।
मुरलिकानाद पियूषनि महानंदन
बिदित सकल ब्रह्म रुद्रादि सुरकरु॥३॥
गदाधरबिषै बृष्टि करुना दृष्टिछ करु
दीनको त्रिविध संताप ताप तवन।
मैं सुनी तुव कृपा कृपन जन-गामिनी
बहुरि पैहै कहा मो बराबर कवन॥४॥
बल-दलन-गर्व-पर्वत-बिदारन
ब्रज-भक्त-रच्छा-दच्छ गिरिराजधर धीर।
बिबिध बेला कुसल मुसलधर संग लै
चारु चरणांक चित तरनि तनया तीर॥२॥
जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक
गोबिंद गोपीजनानंद राधारमन।
नंद-नृप-गेहिनी गर्भ आकर रतन
सिष्टद-कष्टगद धृष्टभ दुष्ट। दानव-दमन॥१॥
सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि / गदाधर भट्ट
कबै हरि, कृपा करिहौ सुरति मेरी / गदाधर भट्ट
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके / गदाधर भट्ट
दिन दूलह मेरो कुँवर कन्हैया / गदाधर भट्ट
सखी, हौं स्याम रंग रँगी / गदाधर भट्ट
नमो नमो जय श्रीगोबिंद / गदाधर भट्ट
है हरितें हरिनाम बड़ेरो / गदाधर भट्ट
झूलत नागरि नागर लाल / गदाधर भट्ट
हरि हरि हरि हरि रट रसना मम / गदाधर भट्ट
जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक / गदाधर भट्ट
श्रीगोबिन्द पद-पल्लव सिर पर बिराजमान / गदाधर भट्ट
आजु ब्रजराजको कुँवर बनते बन्यो / गदाधर भट्ट