हरिको हित ऐसो जैसो रंग-मजीठ,
संसारहित कसूंभि दिन दुतीको।
कहि हरिदासहित कीजै बिहारी सों
और न निबाहु जानि जी को॥२॥
हित तौ कीजै कमलनैनसों,
जा हित आगे और हित लागो फीको।
कै हित कीजै साधुसँगतिसों,
जावै कलमष जी को॥१॥
प्रेम समुद्र रुप रस गहिरे / हरिदास
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं / हरिदास
डोल झूले श्याम श्याम सहेली / हरिदास
हरि के नाम को आलस क्यों करत है रे / हरिदास
श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय / हरिदास
श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे / हरिदास
गहौ मन सब रसको रस सार / हरिदास
जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु / हरिदास
काहू को बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें / हरिदास