बिमुख परचित्त ते चित्त जाको सदा
करत निज नाहकी चित्त चोरी।
प्रकृति यह गदाधर कहत कैसे बनै
अमित महिमा इतै बुद्धि थोरी॥३॥
कृष्णदृग भृंग बिस्त्रामहित पद्मिनी
कृष्णदृग मृगज बंधन सुडोरी।
कृष्ण-अनुराग मकरंदकी मधुकरी
कृष्ण-गुन-गान रास-सिंधु बोरी॥२॥
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके
तरुनिमनि नित्य नवतन किसोरी।
कृष्णतनु लीन मन रुपकी चातकी
कृष्णमुख हिमकिरिनकी चकोरी॥१॥
सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि / गदाधर भट्ट
कबै हरि, कृपा करिहौ सुरति मेरी / गदाधर भट्ट
जयति श्रीराधिके सकलसुखसाधिके / गदाधर भट्ट
दिन दूलह मेरो कुँवर कन्हैया / गदाधर भट्ट
सखी, हौं स्याम रंग रँगी / गदाधर भट्ट
नमो नमो जय श्रीगोबिंद / गदाधर भट्ट
है हरितें हरिनाम बड़ेरो / गदाधर भट्ट
झूलत नागरि नागर लाल / गदाधर भट्ट
हरि हरि हरि हरि रट रसना मम / गदाधर भट्ट
जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक / गदाधर भट्ट