तारों के तेज में चन्द्र छिपे नहीं
सूरज छिपे नहीं बादल छायो
चंचल नार के नैन छिपे नहीं
प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखायो
रण पड़े राजपूत छिपे नहीं
दाता छिपे नहीं मंगन आयो
कवि गंग कहे सुनो शाह अकबर
कर्म छिपे नहीं भभूत लगायो।
फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट / गँग
चकित भँवरि रहि गयो / गँग
बैठी थी सखिन संग / गँग
हहर हवेली सुनि सटक समरकंदी / गँग
एक बुरो प्रेम को पंथ / गँग
देखत कै वृच्छन में / गँग
झुकत कृपान मयदान ज्यों / गँग
उझकि झरोखे झाँकि परम नरम प्यारी / गँग
करि कै जु सिंगार अटारी चढी / गँग
नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारी त्रास / गँग
तारों के तेज में चन्द्र छिपे नहीं / गँग
रती बिन साधु, रती बिन संत / गँग
अब तौ गुनियाँ दुनियाँ को भजै / गँग
मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै / गँग
लहसुन गाँठ कपूर के नीर में / गँग
माता कहे मेरो पूत सपूत / गँग