बडभाग सुहाग भरी पिय सों, लहि फागु में रागन गायो करै।
कवि 'लाल' गुलाल की धूँधर में, चख चंचल चारु चलायो करै॥
उझकै झिझकै झहराय झुकै, सखि-मंडल को मन भायो करै।
छतियाँ पर रंग परे ते तिया, रति रंग ते रंग सवायो करै॥
लाल लखौ पावस प्रताप जगती तल पैं / लाल कवि
सिंधु के सपूत, सिंधु तनया के बंधु / लाल कवि
बडभाग सुहाग भरी पिय सों / लाल कवि
छाये नभमंडल मैं, सलज सघन घन / लाल कवि
होन लागे केकी, कुहकार कुंज कानन मैं / लाल कवि
वन प्रभु पुंजन मैं, मालती निकुंजन मैं / लाल कवि