चकित भँवरि रहि गयो, गम नहिं करत कमलवन,
अहि फन मनि नहिं लेत, तेज नहिं बहत पवन वन।
हंस मानसर तज्यो चक्क चक्की न मिलै अति,
बहु सुंदरि पदिमिनी पुरुष न चहै, न करै रति।
खलभलित सेस कवि गंग भन, अमित तेज रविरथ खस्यो,
खानान खान बैरम सुवन जबहिं क्रोध करि तंग कस्यो॥