Post date: Feb 18, 2018 4:9:22 PM
मूल धातु
इनकी मूल धातु मत पूछ!
(शिक्षक दिवस पर गुरु-चेला संवाद)
पाठशाला में गुरू ने कहा— चेले!
अब थोड़ा सा ध्यान शिक्षा पर भी दे ले।
चल, संस्कृत में ’घोटाला’ अथवा
‘हवाला’ शब्द के रूप सुना।
चेले ने पहले तो कर दिया अनसुना,
पर जब पड़ी गुरू जी की ज़ोरदार संटी,
तो चेले की बोल गई घंटी—
घोटाला, घोटाले, घोटाला:
हवाला, हवाले, हवाला:
हवालां, हवाले, हवाला:
हवालाया, हवालाभ्याम्, हवालाभि:
हवालायै, हवालाभ्याम्, हवालाभ्य:
हवालाया:, हवालाभ्याम्, हवालाभ्य:
हवालात्, हवालाभ्याम्, हवालानाम्
समझ गया गुरू जी समझ गया!
हवाला में जिनका नाम है
हवाला से जिनको लाभ मिला
उन्हें हवालात होगी।
गुरू जी बोले— न कुछ होगा न होगी!
सारी दिशाओं से स्वर आए वाह के,
लेकिन चेला तो रह गया कराह के।
बोला— गुरू जी! हवाला शब्द की
मूल धातु क्या है?
गुरू जी कुपित हुए—
तुझमें न लज्जा है न हया है!
सुन, ये हवाला घोटाला से
सचमुच संबंधित जितने भी जने हैं
तू इनकी मूल धातु पूछता है बेटा,
ये किसी और ही धातु के बने हैं।
हम तो गुरु-शिष्य
ढोल गंवार शूद्र पशु
आम आदमी और वोटर हैं बच्चे,
लेकिन ये हैं देशभक्त सच्चे।
इन्होंने देश को कर दिया छूंछ,
मैं तेरे चरण छूता हूं मेरे शिष्य
तू मुझसे इनकी मूल धातु मत पूछ!
शुभकामनाएं नए साल की
(बच्चे के बस्ते से लेकर ताप के प्रताप
से दमकते हुए आप तक को)
बच्चे के बस्ते को, हर दिन के रस्ते को
आपस की राम राम, प्यार की नमस्ते को
उस मीठी चिन्ता को, गली से गुज़रते जो
पूछताछ करे हालचाल की,
शुभकामनाएं नए साल की!
सोचते दिमाग़ों को, नापती निगाहों को
गारे सने हाथों को, डामर सने पांवों को
उन सबको जिन सबने, दिन रात श्रम करके
सडक़ें बनाईं कमाल की, शुभकामनाएं..!
आंगन के फूल को, नीम को बबूल को
मेहनती पसीने को, चेहरे की धूल को
उन सबको जिन सबकी, बिना बात तनी हुई
तिरछी हैं रेखाएं भाल की, शुभकामनाएं..!
दिल के उजियारे को, प्यारी को प्यारे को
छिपछिप कर किए गए, आंख के इशारे को
दूसरा भी समझे और, ख़ुश्बू रहे ज्यों की त्यों
हमदम के भेंट के रुमाल की, शुभकामनाएं..!
हरियाले खेत को, मरुथल की रेत को
रेत खेत बीच बसे, जनमन समवेत को
खुशियां मिलें और भरपूर खुशियां मिलें
चिन्ता नहीं रहे रोटी दाल की, शुभकामनाएं..!
भावों की बरात को, कलम को दवात को
हर अच्छी चीज़ को, हर सच्ची बात को
हौसला मिले और सब कुछ कहने वाली
हिम्मत मिले हर हाल की, शुभकामनाएं..!
टाले घोटाले को, सौम्य छवि वाले को
सदाचारी जीवन को, शोषण पर ताले को
जीवन के ताप को, ताप के प्रताप को
ताप के प्रताप से, दमकते हुए आपको
पहुंचाता हूं अपने दिल के कहारों से
उठवाई हुई दिव्य शब्दों की पालकी!
शुभकामनाएं नए साल की!
शॉल बचाइए
देश को छोड़िए शॉल बचाइए!
(दूसरों के दाग़ दिखाने के चक्कर
में हम कई बार ख़ुद को जला बैठते हैं।)
श्रीमान जी आप खाना कैसे खाते हैं!
बच्चों की तरह गिराते हैं!!
कुर्ते पर गिराया है सरसों का साग,
पायजामे पर लगे हैं सोंठ के दाग।
ये भी कोई सलीक़ा है!
आपने कुछ भी नहीं सीखा है!!
जाइए कपड़े बदलिए
और इन्हें भिगोकर आइए,
या फिर भाभी जी का
काम हल्का करिए
अभी धोकर आइए!
श्रीमान जी बोले—
आपको क्या, कोई भी धो ले।
पर आप मेरे निजी मामलों में
बहुत दखल देते हैं,
बिना मांगे की अकल देते हैं।
अभी किसी ने
जलती हुई सिगरेट फेंकी,
मैंने अपनी आंखों से देखी।
पिछले तीन मिनिट से
सुलग रहा है आपका शॉल
पर क्या मजाल
जो मैंने टोका हो
आपकी किसी प्रक्रिया को रोका हो!
देश के मामले में भी मेरे भाई!
यही है सचाई!
या तो हम बुरी तरह खाने में लगे हैं,
या फिर दूसरों के दाग़
दिखाने में लगे हैं।
इस बात का किसी को
पता ही नहीं चल रहा है
कि देश धीरे-धीरे जल रहा है।
श्रीमान जी बोले— इस तरह आकाश में
उंगलियां मत नचाइए,
देश को छोडि़ए शॉल बचाइए!