मधुर कटक्ष कृपा रस पूरन मधुर मनोहर बचन विलास।
मधुर उगार देत दासन कों मधुर बिराजत मुख मृदु हास॥४॥
अधर मधुर रस रूप मधुर छबि मधुर मधुर दोऊ ललित कपोल।
श्रवन मधुर कुंडल की झलकन मधुर मकर दोऊ करत कलोल॥३॥
मधुर बचन अरु नयन मधुर जुग मधुर भ्रोंह अलकन की पांत।
मधुर माल अरु तिलक मधुर अति मधुर नासिका कहीय न जात॥२॥
श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे।
सदा बसो मन यह जीवन धन सबहिन सों जु कहत हों टेरे॥१॥
प्रेम समुद्र रुप रस गहिरे / हरिदास
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं / हरिदास
डोल झूले श्याम श्याम सहेली / हरिदास
हरि के नाम को आलस क्यों करत है रे / हरिदास
श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय / हरिदास
श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे / हरिदास
गहौ मन सब रसको रस सार / हरिदास
जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु / हरिदास
काहू को बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें / हरिदास
मधुर कंठ आभूषन भूषित मधुर उरस्थल रूप समाज।
अति विलास जानु अवलंबित मधुर बाहु परिरंभन काज॥५॥
मधुर उदर कटि मधुर जानु जुग मधुर चरन गति सब सुख रास।
मधुर चरन की रेनु निरंतर जनम जनम मांगत ‘हरिदास’॥६॥