Post date: Feb 19, 2018 1:1:8 PM
मेरे हृदय-रक्त की लाली इस के तन में छायी है,
किन्तु मुझे तज दीप-शिखा के पर से प्रीति लगायी है।
इस पर मरते देख पतंगे नहीं चैन मैं पाती हूँ-
अपना भी परकीय हुआ यह देख जली मैं जाती हूँ।
दिल्ली जेल
नवम्बर, 1931