होन लागे केकी, कुहकार कुंज कानन मैं,
झिल्ली-झनकार, दबि देह दहने लगे।
दौरि-दौरि धुरवा, धुधारे मारे भूधर से,
भूधर भ्रमाय, चित चोय चहने लगे॥
लाल लखौ पावस प्रताप जगती तल पैं / लाल कवि
सिंधु के सपूत, सिंधु तनया के बंधु / लाल कवि
बडभाग सुहाग भरी पिय सों / लाल कवि
छाये नभमंडल मैं, सलज सघन घन / लाल कवि
होन लागे केकी, कुहकार कुंज कानन मैं / लाल कवि
वन प्रभु पुंजन मैं, मालती निकुंजन मैं / लाल कवि