दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या
इक ज़रा नज़दीक आ कर देखिए ऐसा भी क्या
हम भी ना-वाक़िफ़ नहीं आदाब-ए-महफ़िल से मगर
चीख़ उठें ख़ामोशियाँ तक ऐसा सन्नाटा भी क्या
ख़ुद हमीं जब दस्त-ए-क़ातिल को दुआ देते रहे
फिर कोई अपनी सितम-गारी पे शरमाता भी क्या
जितने आईने थे सब टूटे हुए थे सामने
शीशा-गर बातों से अपनी हम को बहलाता भी क्या
हम ने सारी ज़िंदगी इक आरज़ू में काट दी
फ़र्ज़ कीजे कुछ नहीं खोया मगर पाया भी क्या
बे-महाबा तुझ से अक्सर सामना होता रहा
ज़िंदगी तू ने मुझे देखा न हो ऐसा भी क्या
बे-तलब इक जुस्तुजू सी बे-सबब इक इंतिज़ार
उम्र-ए-बे-पायाँ का इतना मुख़्तसर क़िस्सा भी क्या
ग़ैर से भी जब मिला 'अख़्तर' तो हँस कर ही मिला
आदमी अच्छा हो लेकिन इस क़दर अच्छा भी क्या.
मुद्दत से लापता है / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
आज भी दश्त-ए-बला में / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
ये हम से पूछते हो रंज-ए-/ 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
दिल की राहें ढूँढने / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
कभी ज़बाँ पे न आया / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
कहें किस से हमारा / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal
सैर-गाह-ए-दुनिया का / 'अख्तर' सईद खान Akhtar Saeed Khan Ghazal