Post date: Feb 19, 2018 8:12:54 AM
कठिन प्रयत्नों से सामग्री
एकत्रित कर लाई थी ।
बड़ी उमंगों से मन्दिर में,
पूजा करने आई थी ।।
पास पहुंकर देखा तो,
मन्दिर का का द्वार खुला पाया ।
हुई तपस्या सफल देव के
दर्शन का अवसर आया ।।
हर्ष और उत्साह बढ़ा, कुछ
लज्जा, कुछ संकोच हुआ ।
उत्सुकता, व्याकुलता कुछ-कुछ
कुछ सभ्रम, कुछ सोच हुआ ।।
किंतु लाज, संकोच त्यागकर
चरणों पर बलि जाऊंगी ।
चिर संचित सर्वस्व पदों पर
सादर आज चढ़ाऊँगी ।।
कह दूंगी अपने अंतर की
कुछ भी नहीं छिपाऊँगी ।
जैसी जो कूछ हूं उनकी ही
हूं, उनकी कहलाऊँगी ।।
पूरी जान साधना अपनी
मन को परमानन्द हुआ ।
किंतु बढ़ी आगे, देखा तो
मन्दिर का पट बन्द हुआ ।।
निठुर पुजारी ! यह क्या मुझ पर
तुझे न तनिक दया आई?
किया द्वार को बन्द और
मैं प्रभु को नहीं देख पाई ?
करके कृपा पुजारी, मुझको
जरा वहां तक जाने दे ।
प्रियतम के थोड़ी-सी पूजा
चरणों तक पहुँचाने दे ।।
जी भर उन्हे देख लेने दे,
जीवन सफल बनाने दे ।
खोल, खोल दे द्वार पुजारी !
मन की व्यथा मिटाने दे ।।
बहुत बड़ी आशा से आई हूं,
मत कर तू मुझे निराश ।
एक बार, बस एक बार, तू
जाने दे प्रियतम के पास।