Post date: Feb 19, 2018 8:5:4 AM
तुम मुझे पूछते हो ’जाऊँ’?
मैं क्या जवाब दूँ, तुम्हीं कहो!
’जा...’ कहते रुकती है जबान
किस मुँह से तुमसे कहूँ ’रहो’!!
सेवा करना था जहाँ मुझे
कुछ भक्ति-भाव दरसाना था।
उन कृपा-कटाक्षों का बदला
बलि होकर जहाँ चुकाना था।
मैं सदा रूठती ही आई,
प्रिय! तुम्हें न मैंने पहचाना।
वह मान बाण-सा चुभता है,
अब देख तुम्हारा यह जाना।