Post date: Feb 18, 2018 2:13:23 PM
कब तक दिल की ख़ैर मनायें, कब तक राह दिखाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे, कब तक याद न आओगे
बीता दीद उम्मीद का मौसम, ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल, कब बर्खा बरसाओगे
अहद-ए-वफ़ा और तर्क-ए-मुहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है, हमसे क्या मनवाओगे
किसने वस्ल का सूरज देखा, किस पर हिज्र की रात ढली
ग़ेसुओं वाले कौन थे, क्या थे, उन को क्या जतलाओगे
'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर बसना भी लुट जाना भी
तुम उस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे