Post date: Feb 18, 2018 1:34:27 PM
मख़दूम[1] की याद में
"आपकी याद आती रही रात-भर"
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर
गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन[2]
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर
फिर सबा[3] सायः-ए-शाख़े-गुल[4] के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर
जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर[5]
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर
एक उमीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर
मास्को, सितंबर, 1978
शब्दार्थ
1 उर्दू के मशहूर कवि, जिन्होंने तेलंगाना आंदोलन में हिस्सा लिया था। उनकी ग़ज़ल से प्रेरित होकर ही ’फ़ैज़’ ने यह ग़ज़ल लिखी है
2 वस्त्र
3 ठंडी हवा
4 गुलाब की टहनी की छाया
5 दरवाज़े कि साँकल