Post date: Feb 18, 2018 2:14:45 PM
हम मुसाफिर युँही मसरूफे सफर जायेंगे,
बेनिशाँ हो गए जब शहर तो घर जायेंगे
किस कदर होगा यहाँ मेहर-ओ-वफा का मातम
हम तेरी याद से जिस रोज़ उतर जायेंगे
जौहरी बंद किये जाते हैं बाज़ारे-सुखन,
हम किसे बेचने अलमास-ओ-गुहर जायेंगे
शायद अपना ही कोई बैत, हुदी-खवाँ बनकर
साथ जायेगा मेरे यार जिधर जायेंगे
"फैज़" आते हैं राहे-इशक में जो सखत मकाम,
आने वालों से कहो हम तो गुज़र जायेंगे...........
मेहर-ओ-वफा - मुहबबत और वफा
बाज़ारे-सुखन - शायरी का बाज़ार
अलमास-ओ-गुहर - कीमती पथतर
बैत - शेयर या दोहा
हुदी-खवाँ - गाने वाला राहगीर