चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो -----------------------।।
सरलार्थ- हे मनुष्य चलो, तुम हमेशा आगे बढ़ते चलो, मार्ग में चाहे कैसी भी कठिनाइयां आए उन्हें पारकर आगे बढ़ते रहो, निश्चित रूप से पर्वत की चोटी पर अपना घर है अतः बिना वाहन के ही पहाड़ पर चढ़ना है। (उस समय) अपना बल ही अपना साधन होता है। इसलिए सदा ही आगे कदम रखो।
पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंस्रा: पशवः परितो घोराः।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो -----------------------।।
सरलार्थ- अरे मनुष्य तुम्हारे रास्ते में अनेक उबड़-खाबड़ तथा तीक्ष्ण पत्थर आएंगे, फिर भी तुम आगे बढ़ते रहो । चारों ओर भयंकर तथा हिंसक पशु भी मिलेंगे इन कारणों से (अपने घर पर्वत की चोटी पर) जाना निश्चय ही मुश्किल है फिर भी तुम सदा कदम आगे बढ़ाते रहो।
जहीहि भीति भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथानुरक्तिम्।।
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो -----------------------।।
सरलार्थ- हे मनुष्य तुम अपने डर को त्याग दो तथा शक्ति को याद करो। अपने देश से बहुत प्यार करो और निरंतर अपने लक्ष्य को याद करो (उसकी प्राप्ति के लिए) अपने कदम सदा आगे बढ़ाते रहो।