एकादशः पाठः - समवायो हि दुर्जयः
(1) पुरा एकस्मिन् वृक्षे एका चटका प्रतिवसति स्म। कालेन तस्याः सन्तति: जाता। एकदा कश्चित् प्रमत्तः गजः तस्य वृक्षस्य अध: आगत्य तस्य शाखां शृण्डेन अत्रोटयत्।
सरलार्थ- पुराने समय में एक वृक्ष पर एक चिड़िया रहती थी। समय के साथ उसके सन्तान उत्पन्न हुई। एक बार कोई मस्त हाथी ने उस वृक्ष के नीचे आकर उसकी टहनी को सुंड से तोड़ दिया ।
(2) चटकाया: नीडं भुवि अपतत्। तेन अण्डानि विशीर्णानि। अथ सा चटका व्यलपत्। तस्याः विलापं श्रुत्वा काष्ठकूट: नाम खगः दुःखेन ताम् अपृच्छत-" भद्रे, किमर्थ विलपसि?" इति। चटकावदत्-दुष्टेनैकेन गजेन मम सन्तति: नाशिता। तस्य गजस्य वधेनैव मम दुःखम् अपसरेत्।"
सरलार्थ - चिड़िया का घोसला जमीन पर गिर गया। इससे अण्डे फूट गए । तब वह चिड़िया रोने लगी। उसके विलाप को सुनकर काषठकूट नामक पक्षी ने दुःखपूर्वक उससे पूछा- "हे कल्याणी, किसलिए रो रही हो?" चिड़िया बोली "एक दुष्ट हाथी ने मेरी सन्तान नष्ट कर डाली । उस हाथी की हत्या से ही मेरा दुःख दूर होगा।"
(3) ततः काष्ठकूट: तां वीणारवा-नाम्न्या: मक्षिकायाः समीपम् अनयत्। तयोः वार्ता श्रुत्वा मक्षिकावदत्- "ममापि मित्रं मण्डूक: मेघनादः अस्ति। शीघं तमुपेत्य यथोचितं करिष्यामः।” तदानीं तौ मक्षिकया सह गत्वा मेघनादस्य पुरः सर्व वृत्तान्तं न्यवेदयताम्।
सरलार्थ- तब काष्ठकूट उसे वीणारवा नामक एक मक्खी के पास ले गया। उनकी बात सुनकर मक्खी बोली "मेरा भी एक मित्र मेघनाद मेंढक है। शीघ्र उसके पास चलकर उचित कार्य करेंगे" | तब उन दोनों ने मक्खी के साथ जाकर मेघनाद के सामने सारा किस्सा (वृत्तांत) निवेदन कर दिया ।
(4) मेघनादः अवदत्- “यथाहं कथयामि तथा कुरुतम्। मक्षिके। प्रथम त्वं मध्याह्ने तस्य गजस्य कर्णे शब्दं कुरु, येन सः नयने निमील्य स्थास्यति। तदा काष्ठकूट: चञ्च्वा तस्य नयने स्फोटयिष्यति। एवं सः गजः अन्धः भविष्यति। तृषार्तः सः जलाशयं गमिष्यति।
सरलार्थ- मेघनाद बोला "जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो । हे मक्खी पहले तुम दोपहर के समय उस हाथी के कान में शब्द करो जिससे वह आँखे बंद करके पड़ा रहेगा" तब काष्ठकूट चोंच से उसकी आँखें फोड़ डालेगा । इस प्रकार वह हाथी अन्धा हो जाएगा । प्यास से व्याकुल वह तालाब की ओर जाएगा।
(5) मार्गे महान् गतः अस्ति। तस्य अन्तिके अहं स्थास्यामि शब्दं च करिष्यामि। मम शब्देन तं गर्तं जलाशयं मत्वा स तस्मिन्नेव गर्ते पतिष्यति मरिष्यति च।" अथ तथा कृते सः गज: मध्याह्ने मण्डूकस्य शब्दम् अनुसृत्य महतः गर्तस्य अन्त: पतित: मृत: च।
सरलार्थ- रास्ते में विशाल गड्ढा है । उसके पास मैं खड़ा हो जाऊँगा और शब्द (टर्र - टर्र) करुंगा । मेरे शब्द के द्वारा उस गड्ढे को तालाब मानकर वह उस गड्ढे में ही गिर पड़ेगा और मर जाएगा । तब वैसा करने पर वह हाथी दोपहर के समय में मेंढक के शब्द का अनुसरण करके बड़े गड्ढे के अन्दर गिरा और मरा ।
(6) तथा चोक्तम्
“बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः"
सरलार्थ- और वैसे कहा गया है-
अनेक निर्बल (छोटे प्राणियों का संगठन (मेल) भी मुश्किल से जीतने योग्य होता है।) अर्थात् दुर्जय होता है।