पञ्चदश पाठः - मातुलचन्द्र
(1) कुत आगच्छसि मातुलचन्द्र!
कुत्र गमिष्यसि मातुलचन्द्र!
सरलार्थ- हे चंदा मामा! तुम कहाँ से आते हो? कहाँ जाओगे?
(2) अतिशयविस्तृतनीलाकाश:
नैव दृश्यते क्वचिदवकाश:
कथं प्रयास्यसि मातुलचन्द्र?
कुत आगच्छसि मातुलचन्द्र?
सरलार्थ- नीला आकाश बहुत दूर-दूर तक फैला हुआ है, कहीं खाली जगह नहीं दिखाई देती। चंदा मामा! तुम कैसे जाओगे? हे चंदा मामा तुम कहाँ से आते हो?
(3) कथमायासि न भो! मम गेहम्
मातुल! किरसि कथं न स्नेहम्
कदा गमिष्यसि मातुलचन्द्र?
कुत आगच्छसि मातुलचन्द्र?
सरलार्थ- आप मेरे घर क्यों नहीं आते हो। मामा! तुम स्नेह क्यों नहीं बरसाते हो? चंदा मामा! तुम कब आओगे? चंदा मामा! तुम कहाँ से आते हो?
(4) धवलं तव चन्द्रिकावितानम्
तारकखचितं सितपरिधानम्
मह्यं दास्यसि मातुलचन्द्र?
कुत आगच्छसि मातुलचन्द्र?
सरलार्थ- तुम्हारी फैली हुई चाँदनी सफ़ेद है। तुम्हारा सफ़ेद वस्त्र चादर तारों से भरा है। हे चंदा मामा, क्या तुम (यह वस्त्र) मुझे दोगे? हे चंदा मामा, तुम कहाँ से आते हो?
(5) त्वरितमेहि मां श्रावय गीतिम्
प्रिय मातुल। वर्धय मे प्रीतिम्
कदा गमिष्यसि मातुलचन्द्र ?
कुत आगच्छसि मातुलचन्द्र?
सरलार्थ- जल्दी आओ, मुझे गीत सुनाओ, प्यारे मामा! मेरा प्यार बढ़ाओ, चंदा मामा क्या तुम नहीं आओगे? चंदा मामा कहाँ से आते हो?