चतुर्दशः पाठः - अनारिकायाः जिज्ञासा
(1) बालिकाया: अनारिकाया: मनसि सर्वदा महती जिज्ञासा भवति। अत: सा बहून् प्रश्नान् पृच्छति। तस्याः प्रश्न: सर्वेषां बुद्धि: चक्रवत् भ्रमति| प्रात: उत्थाय सा अन्वभवत् यत् तस्या: मन: प्रसन्नं नास्ति| मनोविनोदाय सा भ्रमितुं गृहात् बहि: अगच्छत् ।
सरलार्थ- बालिका अनारिका के मन में सदा बड़ी जिज्ञासा रहती है। अतः वह अनेक प्रश्न पूछती है। उसके प्रश्नों के द्वारा सभी की बुद्धि चक्र के समान घूमती है। सुबह उठकर उसने अनुभव किया कि उसका मन प्रसन्न नहीं है। मन को प्रसन्न करने के लिए वह घूमने के लिए घर से बाहर चली गई।
(2) भ्रमणकाले सा अपश्यत् यत् मार्गा: सुसज्जिता: सन्ति। सा चिन्तयति - किमर्थम् इयं सज्जा? सा अस्मरत् यत् अद्य तु मन्त्री आगमिष्यति। स: अत्र किमर्थम् आगमिष्यति इति विषये तस्या: जिज्ञासा: प्रारब्धाः।
सरलार्थ- भ्रमण के समय उसने देखा कि रास्ते सजे हुए है । वह सोचती है - ये किसलिए सजे हैं। वह याद करती है कि आज तो मन्त्री आएंगे। "वह यहाँ किसलिए आएंगे? इस विषय में उसकी जिज्ञासा आरंभ हो गई।
(3) गृहम् आगत्य सा पितरम् अपृच्छत् “पित: मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?' पिता अवदत्-'पुत्री! नद्याः उपरि नवीन: सेतु: निर्मितः। तस्य उद्घाटनार्थ मन्त्री आगच्छति।" अनारिका पुन: अपृच्छत्- "पित:! कि मन्त्री सेतो: निर्माणम् अकरोत्?” पिता अकथयत्-"न हि पुत्रि! सेतोः निर्माणं कर्मकरा: अकुर्वन्|
सरलार्थ- घर आकर उसने पिता से पूछा- हे पिता! मन्त्री किसलिए आ रहे हैं? " पिता जी बोले - हे पुत्री ! नदी के उपर नया पुल बनाया गया है, उसके उद्घाटन के लिए मन्त्री आ रहें हैं।" अनारिका ने फिर पूछा - " हे पिता ! क्या मंत्री ने पुल का निर्माण किया है ? " पिता बोले - नही बेटी! पुल का निर्माण मजदूरों ने किया है।
(4) " पुन: अनारिकाया: प्रश्न: आसीत्-"यदि कर्मकरा: सेतो: निर्माणम् अकुर्वन, तदा मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?” पिता अवदत्- “यतो हि स: अस्माकं देशस्य मन्त्री|"
सरलार्थ- फिर से अनारिका का प्रश्न था - यदि मजदूरों ने पुल का निर्माण किया है, तब मन्त्री किसलिए आ रहे हैं? पिता बोले - क्योंकि वह हमारे देश के मन्त्री हैं।
(5) "पित: सेतो: निर्माणाय प्रस्तराणि कुतः आयान्ति? कि तानि मन्त्री ददाति? विरक्तभावेन पिता उदतरत्-"अनारिके! प्रस्तराणि जना: पर्वतेभ्य: आनयन्ति।" “पित:! तर्हि किम् , एतदर्थं मन्त्री धनं ददाति? तस्य पार्श्वे धनानि कुत: आगच्छन्ति?" एतान् प्रश्नान् श्रुत्वा पिताsवदत्-" अरे! प्रजा: धनं प्रयच्छन्ति।"
सरलार्थ- हे पिता (जी)! पुल के निर्माण के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं? क्या उन्हें मन्त्री देता है? " विरक्तभाव से पिता ने उत्तर दिया - "हे अनारिका! पत्थर लोग पर्वतों से लाते हैं।" हे पिता (जी)! तो क्या इसके लिए मन्त्री धन देते हैं? उसके (उनके) पास धन कहाँ से आता हैं? इन प्रश्नों को सुनकर पिता (जी) बोले - अरे ! प्रजा सरकार के लिए धन देती है ।"
(6) विस्मिता अनारिका पुन: अपृच्छत्- "पित:! कर्मकरा: पर्वतेभ्य: प्रस्तराणि आनयन्ति। ते एवं सेतु निर्मान्ति| प्रजा: धनं ददति। तथापि सेतो: उद्घाटनार्थं मन्त्री किमर्थम् आगच्छतिः?” पिता अवदत्- "प्रथममेव अहम् अकथयम् यत् सः देशस्य मन्त्री अस्ति।
सरलार्थ- आश्चर्यचकित अनारिका ने फिर से पूछा "हे पिता (जी)! (यदि) मजदूर पर्वतों से पत्थर लाते हैं। वे ही पुल का निर्माण करते हैं। प्रजा सरकार को धन देती है। फिर भी पुल के उद्घाटन के लिए मन्त्री किसलिए आ रहे हैं?” पिता बोले - पहले ही मैंने कहा कि वह ही देश के मन्त्री हैं।
(7) स जनप्रतिनिधि: अपि अस्ति| जनताया: धनेन निर्मितस्य सेतो: उद्घाटनाय जनप्रतिनिधि: आमन्त्रित भवति। चल सुसज्जिता भूत्वा विद्यालयं चल|" अनारिकाया: मनसि इतोSपि बहव: प्रश्ना: सन्ति।
सरलार्थ- वह जनता के प्रतिनिधि भी है। जनता के धन से निर्मित पुल के उद्घाटन के लिए जनता के प्रतिनिधि आमंत्रित होते हैं। चल तैयार होकर विद्यालय चल । अब भी अनारिका के मन में बहुत प्रश्न है।"