(1) (ग्रीष्मर्तौ सायंकाले विद्युदभावे प्रचण्डोष्मणा पीडितः वैभवः गृहात् निष्क्रामति)
वैभवः – अरे परमिन्दर्! अपि त्वमपि विद्युदभावेन पीडितः बहिरागत:?
सरलार्थ:- (ग्रीष्म ऋतु में शाम को बिजली के न रहने पर भयानक गर्मी से दु:खी वैभव घर से निकलता है।)
वैभव – अरे परमिन्दर्! क्या तुम भी बिजली के अभाव से परेशान बाहर आए हो?
(2) परमिन्दर्– आम् मित्र! एकत: प्रचण्डातपकाल: अन्यतश्च विद्युदभावः परं बहिरागत्यापि पश्यामि यत् वायुवेगः तु सर्वथाऽवरुद्धः।सत्यमेवोक्तम्।
सरलार्थ:- परमिन्दर् – हाँ मित्र! एक ओर से भयानक गर्मी का समय है और दूसरी ओर बिजली की कमी है परन्तु बाहर आकर देखता हूँ कि हवा की गति भी पूरी तरह से रुकी हुई है। सच ही कहा गया है-
(3) प्राणिति पवनेन जगत् सकलं, सृष्टिर्निखिला चैतन्यमयी।
क्षणमपि न जीव्यतेऽनेन विना, सर्वातिशायिमूल्यः पवनः॥
सरलार्थ:- सारा संसार हवा से ही साँस ले रहा है, सारी दुनिया (हवा से ही) चेतना युक्त है। इसके बिना क्षण भर भी जिया नहीं जाता है, हवा सबसे अधिक मूल्यवान है|
(4) विनयः – अरे मित्र! शरीरात् न केवलं स्वेदबिन्दवः अपितु स्वेदधारा: इव प्रस्रवन्ति स्मृतिपथमायाति शुक्लमहोदयैः रचितः श्लोकः।
तप्तैर्वाताघातैरवितुं लोकान् नभसि मेघाः,
आरक्षिविभागजना इव समये नैव दृश्यन्ते॥
सरलार्थ:- विनय– अरे मित्र! शरीर से न केवल पसीने की बूंदें बल्कि मानो पसीने की धारें बहती हैं। माननीय शुक्ल जी के द्वारा लिखा गया यह श्लोक याद आ रहा है।
तपते हुए वायु के प्रहार से परेशान लोगों को आकाश में बादल, पुलिस विभाग के लोगों की तरह समय पर नहीं दिखाई देते हैं।
(5) परमिन्दर् – आम् अद्य तु वस्तुतः एव
निदाघतापतप्तस्य, याति तालु हि शुष्कताम्।
पुंसो भयार्दितस्येव, स्वेदवन्जायते वपुः॥
सरलार्थ:- परमिन्दर् – हाँ, आज तो वास्तव में ही
गर्मी की धूप में तपे हुए व्यक्ति का तालु निश्चय ही सूख जाता है। भयभीत मनुष्य के समान ही शरीर मानो पसीने से भर जाता है।
(6) जोसेफः – मित्राणि यत्र-तत्र बहुभूमिकभवनानां, भूमिगतमार्गाणाम्, विशेषतः मैट्रोमार्गाणां, उपरिगमिसेतूनाम् मार्गेत्यादीनां निर्माणाय वृक्षाः कर्त्यन्ते। तर्हि अन्यत् किमपेक्ष्यते अस्माभिः? वयं तु विस्मृतवन्तः एव-
सरलार्थ:- जोसेफ – मित्रो! जहाँ-तहाँ बहुमंजिला भवनों के, भूमिगत रास्तों के, विशेष रूप से मेट्रो के रास्तों के ऊपर से जाने वाले पुलों के रास्ते आदि के निर्माण के लिए वृक्ष काटे जाते हैं। तो हम और दूसरी क्या अपेक्षा करें? हम तो भूल ही गए हैं-
(7) एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना।
दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥
परमिन्दर् – आम् एतदपि सर्वथा सत्यम्! आगच्छन्तु नदीतीरं गच्छामः! तत्र चेत् काञ्चित् शान्तिं प्राप्तु शक्ष्येम।
सरलार्थ:- एक सूखे वृक्ष के अग्नि के द्वारा जलने से वह सारा वन वैसे ही जल जाता है, जैसे कुपुत्र से सारा वंश (जल जाता है)।
परमिन्दर् – हाँ, यह भी पूरी तरह सच है। आओ नदी के किनारे चले हैं। वहाँ शायद कोई शान्ति प्राप्त हो सकेगी।
(8) (नदीतीरं गन्तुकामाः बालाः यत्र-तत्र अवकरभाण्डारं दृष्ट्वा वार्तालापं कुर्वन्ति)
जोसेफः – पश्यन्तु मित्राणि यत्र-तत्र प्लास्टिकस्यूतानि अन्यत् चावकरं प्रक्षिप्तमस्ति। कथ्यते यत्।
सरलार्थ:- (नदी के किनारे जाने वाले बच्चे जहाँ-तहाँ कूड़े की ढेर को देखकर बातचीत करते हैं।)
जोसेफ – देखो मित्रो, जहाँ-तहाँ प्लास्टिक के लिफाफे और दूसरे कूड़े पड़े हैं। कहा जाता है। कि साफ-सफाई स्वास्थ्य बढ़ाने वाली है
(9) स्वच्छता स्वास्थ्यकरी परं वयं तु शिक्षिताः अपि अशिक्षित इवाचरामः अनेन प्रकारेण…
वैभवः – गृहाणि तु अस्माभिः नित्यं स्वच्छानि क्रियन्ते परं किमर्थं स्वपर्यावरणस्य स्वच्छतां प्रति ‘ध्यानं न दीयते।
सरलार्थ:- परन्तु हम सब शिक्षित भी अशिक्षित की तरह व्यवहार करते हैं। इस तरह से
वैभव – घर तो हमारे प्रतिदिन साफ किए जाते हैं परन्तु क्यों नहीं स्वच्छ पर्यावरण की स्वच्छता की ओर ध्यान दिया जाता है।
(10) विनयः – पश्य-पश्य उपरितः इदानीमपि अवकरः मार्गे क्षिप्यते। (आहूय) महोदये! कृपां कुरु मार्गे भ्रमभ्यः । एतत् तु सर्वथा अशोभनं कृत्यम्।
अस्मद्सदृशेभ्यः बालेभ्यः भवतीसदृशैः एवं संस्कारा देयाः।।
सरलार्थ:- विनय – देखो-देखो, ऊपर से अब भी कूड़ा रास्ते में फेंका जा रहा है। (बुलाकर) देवी जी! रास्ते में चलने वालों पर कृपा करो। यह तो पूरी तरह से बुरा काम है। आप जैसी महिलाओं द्वारा हमारे समान बच्चों को इस प्रकार के संस्कार देने चाहिए?
(11) रोजलिन् – आम् पुत्र! सर्वथा सत्यं वदसि! क्षम्यन्ताम्। इदानीमेवागच्छामि।
सरलार्थ:- रोजलिन् – हाँ बेटा! पूरी तरह ठीक कहते हो। क्षमा करना। अभी आ रही हूँ।
(12) (रोजलिन् आगत्य बालैः साकं स्वक्षिप्तमवकरम् मार्गे विकीर्णमन्यदकरं चापि संगृह्य अवकरकण्डोले पातयति)
बालाः – एवमेव जागरूकतया एव प्रधानमंत्रिमहोदयानां स्वच्छताऽभियानमपि गतिं प्राप्स्यति।
सरलार्थ:- (रोजलिन् आकर बच्चों के साथ अपने द्वारा फेंके गए कूड़े को और रास्ते में बिखेर हुए दूसरे कूड़े को भी इकट्ठा करके कूड़ेदान में डालती है।)
बच्चे – ऐसी ही जागरूकता से प्रधानमंत्री महोदय का स्वच्छता अभियान भी गति प्राप्त करेगा।
(13) विनयः – पश्य पश्य तत्र धेनुः शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि खादति। यथाकथञ्चित् निवारणीया एषा (मार्गे कदलीफलविक्रेतारं दृष्ट्वा बालाः कदलीफलानि क्रीत्वा धेनुमाह्वयन्ति भोजयन्ति च, मार्गात् प्लास्टिकस्यूतानि चापसार्य पिहिते अवकरकण्डोले क्षिपन्ति)
सरलार्थ:- विनय – देखो-देखो वहाँ गाय साग-फलों के छिलकों के साथ प्लास्टिक की थैली को भी खा रही है। इसे किसी भी तरह से रोकना चाहिए। (रास्ते में केले बेचनेवाले को देखकर बच्चे केलों को खरीदकर गाय को बुलाते हैं और खिलाते हैं और रास्ते से प्लास्टिक की थैलियों को हटाकर ढके हुए कूड़ेदान में डालते हैं।)
(14) परमिन्दर् – प्लास्टिकस्य मृत्तिकायां लयाभवात् अस्माकं पर्यावरणस्य कृते महती क्षतिः भवति। पूर्व तु कापसेन, चर्मणा, लौहेन, लाक्षया, मृत्तिकया, काष्ठेन वा निर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते स्म। अधुना तत्स्थाने प्लास्टिकनिर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते।
सरलार्थ:- परमिन्दर् – प्लास्टिक का मिट्टी में न मिलने से हमारे पर्यावरण को बहुत हानि होती है। पहले तो कपास से, चमड़े से, लोहे से, लाख से, मिट्टी से अथवा लकड़ी से बनी हुई वस्तुएँ ही मिलती थीं। अब उसकी जगह पर प्लास्टिक से बनी हुई चीजें ही मिलती हैं।
(15) वैभवः – आम् घटिपट्टिका, अन्यानि बहुविधानि पात्राणि, कलमेत्यादीनि सर्वाणि तु प्लास्टिकनिर्मितानि भवन्ति।
जोसेफः – आम् अस्माभिः पित्रोः शिक्षकाणां सहयोगेन प्लास्टिकस्य विविधपक्षाः विचारणीयाः। पर्यावरणेन सह पशवः अपि रक्षणीयाः।
सरलार्थ:- वैभव – हाँ, घड़ी की पट्टी, दूसरे बहुत प्रकार के बर्तन, कलम आदि सभी तो प्लास्टिक से ही बनी हुई होती हैं।
जोसेफ – हाँ, हमें माता-पिता-शिक्षकों के सहयोग से प्लास्टिक के अनेक पक्षों पर विचार करना चाहिए। पर्यावरण के साथ पशु भी रक्षित किए जाने चाहिए।
(16) (एवमेवालपन्तः सर्वे नदीतीरं प्राप्ताः, नदीजले निमज्जिताः भवन्ति गायन्ति च-
सुपर्यावरणेनास्ति जगतः सुस्थितिः सखे।
जगति जायमानानां सम्भवः सम्भवो भुवि॥
सरलार्थ:- (इसी प्रकार से बातचीत करते हुए सभी नदी के किनारे पहुँच गए, नदी के पानी में डुबकी लगाते हैं और गाते हैं।)
हे मित्र! अच्छे पर्यावरण से संसार की अच्छी होती है। संसार में उत्पन्न हुओं का अच्छा रहना ही वास्तव में धरती पर रहना है।
(17) सर्वे – अतीवानन्दप्रदोऽयं जलविहारं।
सरलार्थ:- सब – यह जल क्रीडा बहुत आनंददायक है।