1- गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।
सरलार्थ- गुणवान लोग यदि गुणवान लोगों के साथ रहे तो वे गुणवान ही रहते हैं परंतु यदि वे निर्गुण अर्थात् दुष्ट लोगों के साथ रहे तो वे भी दुष्ट हो जाते हैं। जिस प्रकार नदियों में बहने वाला मीठा जल समुद्र में मिलकर पीने योग्य नहीं रहता।
2- साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद् भागधेयं परमं पशूनाम्।।
सरलार्थ - साहित्य, संगीत तथा कला से विहीन व्यत्तिफ़ सींग और पूंछ के बिना साक्षात् पशु के समान है। यह पशुओं का बहुत बड़ा सौभाग्य है कि वह घास न खाते हुए भी जीवित रहता हैं।
3- लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य।।
सरलार्थ- लोभी व्यक्ति का यश, चुगली करने वाले की मित्रता, काम न करने वाले का परिवार, सर्वदा धन की लालसा करने वाले का धर्म, बुरी आदतों वाले की विद्या, कंजूस का सुख तथा विवेकहीन मंत्री वाले राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।
4- पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जन्येन्मधुमक्षिकासौ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।।
सरलार्थ- जिस प्रकार मधुमक्खी कड़वा व मीठा रस समान रुप से पीकर सदा मीठा (शहद) ही उत्पन्न करती है, उसी प्रकार संतजन दुर्जन तथा सज्जन दोनों ही प्रकार के लोगों की समान रुप से बातें सुनकर सदा मीठी वाणी ही बोलते हैं।
5- विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते।
प्रसादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः।।
सरलार्थ- जो व्यक्ति अपने पौरुष अर्थात् परिश्रम को छोड़कर भाग्य का सहारा लेता है। उस व्यक्ति की स्थिति महलों में बने हुए उस शेर की तरह हो जाती है जिसके सिर पर कौए बैठते हैं अर्थात् उस व्यत्तिफ़ का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
6- पुष्पपत्रफलछायामूलवल्कलदारुभिः।
धन्या महीरुहाः येषां विमुखं यान्ति नार्थिनः।।
सरलार्थ - फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़, छाल, लकड़ी आदि से युत्तफ़ पेड़ धन्य हैं, जिनके कारण याचक कभी भी उनसे निराश नहीं होते हैं। अर्थात् पेड़ों के पास देने के लिए बहुत कुछ है। वे कभी भी याचक को ऽाली हाथ नहीं लौटाते हैं।
7- चिन्तनीय हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः।
न कूपखननं युक्तं प्रदीपदे वह्निना गृहे।।
सरलार्थ- विपत्ति से पहले ही समाधान ढूंढ लेना चाहिए। विपत्ति आने के बाद उसका समाधान ढूंढना उसी प्रकार अनुचित है, जैसे घर में आग लगने के बाद कुआं खोदना।