त्रयोदशः पाठः – अमृतं संस्कृतं
(1) विश्वस्य उपलब्धासु भाषासु संस्कृतभाषा प्राचीनतमा भाषास्ति। भाषेयं अनेकाषां भाषाणां जननी मता। प्राचीनयो: ज्ञानविज्ञानयो: निधिः अस्यां सुरक्षितः। संस्कृतस्य महत्त्वविषये केनापि कथितम् - "भारतस्य प्रतिष्ठे । संस्कृतं संस्कृतिस्तथा "|
सरलार्थ- संसार की प्राप्त भाषाओं में संस्कृत भाषा प्राचीन भाषा है। यह भाषा अनेक भाषाओं की माता मानी गई हैं। इसमें प्राचीन ज्ञान तथा विज्ञान का खजाना सुरक्षित है। संस्कृत के महत्व के विषय में किसी ने कहा है - 'भारत की दो प्रतिष्ठा हैं - संस्कृत और संस्कृति।
(2) इयं भाषा अतीव वैज्ञानिकी। केचन कथयन्ति यत् संस्कृतमेव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तमा भाषा। अस्या: वाङ्मयं वेदैः, पुराणै:, नीतिशास्त्रैः चिकित्साशास्त्रादिभिश्च समृद्धमस्ति। कालिदासादीनां विश्वकवीनां काव्यसौन्दर्यम् अनुपमम्।
सरलार्थ- यह भाषा अत्यधिक वैज्ञानिक है। कुछ कहते हैं कि संस्कृत भाषा ही कम्प्यूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा है। इसका साहित्य वेदों, पुराणों, नीतिशास्त्रों तथा चिकित्साशास्त्र आदि के द्वारा समृद्ध है । कालिदास आदि विश्वकवियों के काव्य का सौन्दर्य अतुलनीय है ।
(3) कौटिल्यरचितम् अर्थशास्त्रं जगति प्रसिद्धमस्ति। गणितशास्त्रे शून्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथमम् आर्यभट: अकरोत्। चिकित्साशास्त्रे चरकसुश्रुतयो: योगदानं विश्वप्रसिद्धम्।
सरलार्थ- कौटिल्यरचितम् अर्थशास्त्रं जगति प्रसिद्धमस्ति| गणितशास्त्र में शून्य का सर्वप्रथम प्रतिपादन आचार्य आर्यभट ने किया। चिकित्सा शास्त्र में चरक तथा सुश्रुत का योगदान विश्व प्रसिद्ध है।
(4) संस्कृते यानि अन्यानि शास्त्राणि विद्यन्ते तेषु वास्तुशास्त्रं, रसायनशास्त्रं, खगोलविज्ञानं, ज्योतिषशास्त्रं, विमानशास्त्रम् इत्यादीनि उल्लेखनीयानि।
सरलार्थ- संस्कृत भाषा में जो अन्य शास्त्र विद्यमान हैं, उनमें वास्तुशास्त्र, रसायनशास्त्र, अंतरिक्ष विज्ञान, ज्योतिष शास्त्र तथा विमानशास्त्र इत्यादि उल्लेख के योग्य हैं।
(5) संस्कृते विद्यमाना: सूक्तयः अभ्युदयाय प्रेरयन्ति, यथा - सत्यमेव जयते, वसुधैव कुटुम्बकम्, विद्ययाsमृतमश्नुते, योग: कर्मसु कौशलम् इत्यादयः। सर्वभूतेषु आत्मवत् व्यवहारं कर्तुं संस्कृतभाषा सम्यक् शिक्षयति।
सरलार्थ- संस्कृत में विद्यमान सुंदर वचन कल्याण के लिए प्रेरित करते है - जैंसे सत्य की ही जीत होती है। पृथ्वी परिवार है। विद्या के द्वारा मनुष्य अमृत प्राप्त करता है। कार्यों में दक्षता ही योग है इत्यादि। सभी प्राणियों को अपने समान मानकर व्यवहार करने के लिए संस्कृत भाषा अच्छी प्रकार शिक्षा देती है।
(6) केचन कथयन्ति यत् संस्कृतभाषायां केवलं धार्मिक साहित्यम् वर्तते- एषा धारणा समीचीना नास्ति। संस्कृतग्रन्थेषु मानवजीवनाय विविधा: विषया: समाविष्टा: सन्ति।
सरलार्थ- कुछ लोग कहते है कि संस्कृत भाषा का केवल धार्मिक साहित्य मौजूद है। यह विचार उचित नहीं है। संस्कृत ग्रंथों में मानव जीवन के लिए विविध विषय सम्मिलत हैं।
(7) महापुरुषाणां मतिः, उत्तमजनानां धृति: सामान्यजनानां जीवनपद्धति: च वर्णिता: सन्ति। अतः अस्माभिः संस्कृतम् अवश्यमेव पठनीयम्। तेन मनुष्यस्य समाजस्य च परिष्कार: भवेत्। उक्तञ्च
सरलार्थ- जैंसे - महापुरुषों की बुद्धिः, उत्तम लोगों का धैर्य और सामान्य लोगों की जीवन पद्धति, वर्णित है। इसलिए हमें संस्कृत अवश्य ही पढनी चाहिए। उससे मनुष्य का और समाज का सुधार हो सके। कहा भी गया है -
(8) अमृतं संस्कृतं मित्र!
सरसं सरल वच: ।
भाषासु महनीयं यद्
ज्ञानविज्ञानपोषकम् ।।
अन्वयः - (भो) मित्र। संस्कृत अमृतं सरलं वचः (अस्ति) । भाषासु महनीयं यद् ज्ञानविज्ञानपोषकम्।
सरलार्थ- मित्र। संस्कृत अमृत है। सरस तथा सरल वाणी है। भाषाओं में जो आदणीय है और ज्ञान एवं विज्ञान की पोषक है।