1-पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलम् सुभाषितम् ।
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ।।
सरलार्थ - पृथ्वी पर जल,अन्न और सुंदर वचन ये तीन रत्न हैं लेकिन मूर्खों के द्वारा पत्थर के टुकड़ों को रत्नों की संज्ञा दी जाती है।
2- सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः ।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ।।
सरलार्थ - इस संसार में सत्य पर ही पृथ्वी टिकी है, सत्य के द्वारा ही सूर्य तपता है, सत्य के द्वारा ही वायु बहती है, सारा संसार सत्य पर ही स्थित है।
3- दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये ।
विस्मयो न हि कर्त्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ।।
सरलार्थ - दान में, तप में, बल में, विज्ञान में , नम्रता में,नीति में आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि निश्चय ही पृथ्वी अनेक रत्नों वाली है।
4- सद्भिरेव सहासीत सद्भि: कुर्वीत संगतिम् ।
सद्भिर्विवादं मैत्रीं च नासद्भि किंचिदाचरेत् ।।
सरलार्थ - अच्छे लोगों के साथ ही बैठना चाहिए, अच्छे लोग से ही संगति करनी चाहिए, अच्छे लोगों के साथ ही झगड़ा या दोस्ती करनी चाहिए और दुष्ट लोगों के साथ कुछ भी आचरण नहीं करना चाहिए।
5- धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च ।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।।
सरलार्थ - धन और धान्य का प्रयोग करने में, ज्ञान के संचय में तथा भोजन और व्यवहार में संकोच को छोड़ने वाला व्यक्ति सुखी होता है।
6- क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया कि न साध्यते ।
शान्तिखड्गः करे यस्य कि करिष्यति दुर्जनः ।।
सरलार्थ - संसार में सभी क्षमा के वश में है तथा क्षमा से हर कार्य सफल हो सकता है, जिस व्यक्ति के पास क्षमा रूपी तलवार है, दुष्ट उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है।