सरलार्थ- कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिहः प्रतिवसति स्म। सः कदाचित् इतस्ततः परिभ्रमन् क्षुधार्तः न किञ्चिदपि आहारं प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-" नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोsपि जीवः आगच्छति। अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि" इति।
सरलार्थ- किसी जंगल में खरनखर नाम का शेर रहता था। वह किसी दिन भूख से व्याकुल (परेशान) होकर यहां वहां भटका परंतु उसे कहीं भी भोजन प्राप्त नहीं हुआ। फिर सूर्यास्त के समय पर एक बड़ी गुफा को देखकर उसने सोचा अवश्य ही इस गुफा में रात में कोई जीव आता होगा। इसलिए यहीं छुप कर बैठ जाता हूँ।
एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नामकः शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। शृगालः अचिन्तयत्-"अहो विनष्टोsस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिहः अस्तीति तर्कयामि। तत् कि करवाणि?"
सरलार्थ- इसी समय गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नाम का एक सियार वहां पर पहुंचा। जैसे ही उसने देखा शेर के पैरों के निशान गुफा में जाते हुए दिख रहे हैं, परंतु बाहर आते हुए नहीं। सियार ने सोचा - अरे अब मेरी मृत्यु निश्चित है।अवश्य ही इस गुफा में शेर है ऐसा मुझे लग रहा है। तो अब क्या करूं?
एवं विचिन्त्य दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः-"भो बिल! भो बिल! कि न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समयः कृतोsस्ति यत् यदाहं बाह्यतः प्रत्यागमिष्यामि तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि? यदि त्वं मां न आह्नयसि तर्हि अहं द्वितीयं बिलं यास्यामि इति।"
सरलार्थ- ऐसा सोचकर वह दूर से ही आवाज करने लगा। हे गुफा! हे गुफा! क्या तुझे याद नहीं है, कि मैंने तुम्हारे साथ एक शर्त की थी कि जब मैं बाहर से लौट कर आऊंगा तो तुम मुझे पुकारोगी? यदि तुम मुझे नहीं पुकारोगी तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊंगा।
अथ एतच्छ्रुत्वा सिहः अचिन्तयत्-"नूनमेषा गुहा स्वामिनः सदा समाह्नानं करोति। परन्तु मद्भयात् न किञ्चित वदति।"
सरलार्थ- अब यह सुनकर शेर ने सोचा- अवश्य ही यह गुफा अपने स्वामी को हमेशा बुलाती होगी। परंतु मेरे डर से कुछ नहीं बोल रही है।"
अथवा साध्विदम् उच्यते-
भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्।।
सरलार्थ- अथवा यहा ठीक ही कहा है- डरे हुए मन वालों की हाथ-पांव आदि से संबंधित क्रिया काम नहीं करती है, न ही उसकी आवाज निकलती है, और कंपन भी अधिक होता है।
तदहम् अस्य आह्नानं करोमि। एवं सः बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति। इत्थं विचार्य सिहः सहसा शृगालस्य आह्नानमकरोत्। सिहस्य उच्चगर्जन- प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चैः शृगालम् आह्नयत्। अनेन अन्येsपि पशवः भयभीताः अभवन्। शृगालोsपि ततः दूरं पलायमानः
इममपठत्-
सरलार्थ- तो अब मैं इसको बुलाता हूं। इस प्रकार वह गुफा में प्रवेश करके मेरा भोजन बन जाएगा। इस प्रकार सोचकर शेर ने अचानक सियार को पुकारा। सिंह की ऊंची गर्जन से गूंजती हुई उस गुफा ने ऊंची आवाज़ में सियार को पुकारा। इससे और पशु भी डर गए । सियार ने भी वहां से दूर भागते हुए यह पढ़ा -
अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
वनेsत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।।
सरलार्थ- आई हुई विपत्ति के बारे में जो सोच समझ कर कार्य करता है वही शोभा पाता है और जो बिना सोचे समझे कार्य करता है उसे दुख प्राप्त होता है। जंगल में रहते हुए मैं बूढ़ा हो जाऊँगा परन्तु गुफा की आवाज़ मैंने कभी भी नहीं सुनी।