1- सूर्यस्तपतु मेघाः वा वर्षन्तु विपुलं जलम्।
कृषिका कृषिको नित्यं शीतकालेsपि कर्मठौ ।।
अन्वय- सूर्यः तपतु मेघाः वा विपुलं जलम् वर्षन्तु कृषिका कृषिकः नित्यं शीतकाले
अपि कर्मठौ।
सरलार्थ- चाहे सूर्य तपे अथवा चाहे बादल बहुत अधिक मात्रा में पानी बरसायें। किसान
और महिला किसान हमेशा सर्दी के समय में भी परिश्रम करते रहते हैं।
2- ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं शीते कम्पमयं सदा।
हलेन च कुदालेन तौ तु क्षेत्रणि कर्षतः ।।
अन्वय- ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं (भवति) शीते सदा कम्पमयम्। (तथापि) तौ तु हलेन
कुदालेन च क्षेत्रणि कर्षतः ।।
सरलार्थ- गर्मी में शरीर पसीने से लथपथ होता है। सर्दी में हमेशा कांपता हैए तब भी वे
दोनों हल और कुदाल से खेतों को जोतते हैं।
3- पादयोर्न पदत्रणे शरीरे वसनानि नो।
निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति ।।
अन्वय- पादयोः न पदत्रणे शरीरे नो वसनानि। निर्धनं जीवनं कष्टं (अस्ति) सुखं
(तु) दूरे हि तिष्ठति ।
सरलार्थ- पैरों में जूते नहीं है। शरीर पर कपड़े नहीं है। गरीबी वाला जीवन कष्टदायक
है। सुख उनसे दूर ही रहता है।
4- गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति ।।
अन्वय- गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्। तथापि कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न
नश्यति ।
सरलार्थ- घर टूटा फूटा हैए जो वर्षा ऋतु में बारिश को रोकने में समर्थ नहीं है। तब
भी उन महिला किसानों की कर्मवीरता नष्ट नहीं होती है।
5- तयोः श्रमेण क्षेत्रणि सस्यपूर्णानि सर्वदा।
धरित्री सरसा जाता या शुष्का कण्टकावृता ।।
अन्वय- तयोः श्रमेण क्षेत्रणि सर्वदा सस्यपूर्णानि। या शुष्का कण्टकावृता धरित्री सरसा
जाता।
सरलार्थ- उनके परिश्रम से खेत हमेशा फसलों से युक्त रहते हैं। जो सूखी और कांटो
से परिपूर्ण पृथ्वी थी (वह) हरी भरी हो गई।
6- शाकमन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा सर्वेभ्य एव तौ।
क्षुधा-तृषाकुलौ नित्यं विचित्रै जन-पालकौ ।।
अन्वय- तौ सर्वेभ्य एव शाकम् अन्नं, फलं, दुग्धं, दत्त्वा जन-पालकौ नित्यं विचित्रै
क्षुधा-तृषाकुलौ ।
सरलार्थ- वे दोनों सभी के लिए सब्जीए अन्नए फल और दूध देकर विचित्र जनपालक
भूख और प्यास से हमेशा बेचैन रहते हैं।