द्वादशः पाठः- दशमः त्वम् असि
(1) एकदा दश बालका: स्नानाय नदीम् अगच्छन्। ते नदीजले चिरं स्नानम् अकुर्वन। ततः ते तीर्त्वा पारं गताः। तदा तेषां नायक: अपृच्छत्- अपि सर्वे बालका: नदीम् उत्तीर्णाः?
सरलार्थ- एक बार दस बालक स्नान के लिए नदी पर गए। उन्होंने देर तक नदी के जल में स्नान किया। फिर वे तैरकर नदी के पार गए। तब उनके नायक ने पूछा- क्या सभी बालक नदी पार कर गए हैं?
(2) तदा कश्चित् बालकः अगणयत्- एकः, द्वौ, त्रयः, चत्वारः, पञ्च, षट्, सप्त, अष्टौ, नव इति। सः स्वं न अगणयत्। अतः सः अवदत्-नव एव सन्ति। दशमः न अस्ति।
सरलार्थ- तब किसी बालक ने गणना की -“एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ:, सात, आठ, नौ इस तरह।" उसने अपने आपको नहीं गिना। अतः वह बोला- नौ ही हैं, दसवाँ नहीं है।
(3) अपरः अपि बालकः पुनः अन्यान् बालकान् अगणयत्। तदा अपि नव एवं आसन्। अत: ते निश्चयम् अकुर्वन् यत् दशमः नद्यां मग्नः। ते दुःखिता: तृष्णीम् अतिष्ठन्।
सरलार्थ- दूसरे बालक ने भी अन्य बालकों को गिना। फिर भी नौ ही थे। अतः उन्होंने निश्चय किया कि दसवां नदी में डूब गया है। वे दुखी हो, चुपचाप बैठ गए।
(4) तदा कश्चित् पथिकः तत्र आगच्छत्। सः तान् बालकान् दुःखितान् दृष्ट्वा अपृच्छत् -बालका:! युष्माकं दुःखस्य कारणं किम्? बालकानां नायक: अकथयत्-“वयं दश बालका: स्नातुम् आगताः।
सरलार्थ- तब कोई पथिक वहाँ आया। उसने उन बालकों को दुखी देखकर पूछा-“हे बच्चो ! तुम लोगों के दुःख का कारण क्या है? बालकों के नायक ने कहा- हम दस लड़के स्नान के लिए आए थे।
(5) इदानी नव एव स्मः। एक: नद्यां मग्नः। पथिकः तान् अगणयत्। तत्र दश बालका: एव आसन्। सः नायकम् आदिशत् त्वं बालकान् गणय। स: तु नव बालकान् एव अगणयत्।
सरलार्थ- अब हम नौ ही हैं। एक नदी में डूब गया है।" पथिक ने उन्हें गिना। वहाँ दस बालक ही थे। उसने नायक को आदेश दिया-“तुम बालकों को गिनो। उसने तो नौ बालक ही गिने।
(6) तदा पथिकः अवदत्-दशमः त्वम् असि इति। तत् श्रुत्वा प्रहष्टा: भूत्वा सर्वे गृहम् अगच्छन्।
सरलार्थ- तब पथिक बोला- दसवें तुम हो। यह सुनकर सब खुश होकर घर चले गए।