1-उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ।।
अन्वय- कार्याणि उद्यमेन हि सिध्यन्ति न मनोरथैः सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगाः न हि प्रविशन्ति।
सरलार्थ- कार्य परिश्रम से ही सिद्ध होते हैं इच्छाओं से नहीं, जिस प्रकार सोते हुए शेर के मुंह में हिरण प्रवेश नहीं करते हैं अर्थात् उसको भी भोजन के लिए परिश्रम करना पड़ता है।
2-पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितः।
कि भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थकः ।।
अन्वय- पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितः। जीवने यो न सार्थकः तेन पाठेन कि भवेत् ।
सरलार्थ- पुस्तक में पढ़ा गया पाठ जीवन में नहीं अपनाया जाता है। जीवन में जो सार्थक नही है, उस पाठ से क्या लाभ अर्थात् कोई लाभ नही है।
3- प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।
अन्वय- सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति। तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता?
सरलार्थ- प्रिय वाक्य बोलने से सभी जीव संतुष्ट होते हैं (प्रसन्न होते हैं) इसलिए निश्चित रूप से प्रिय बोलना चाहिए। बोलने में भी कैसी गरीबी अर्थात प्रिय बोलने में संकोच नहीं करना चाहिए।
4-गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि।
अगच्छन् वैनतेयोSपि पदमेकं न गच्छति ।।
अन्वय- गच्छन् पिपीलकः शतानि अपि योजनानां याति । अगच्छन् वैनतेयः अपि एकं पदं न गच्छति ।
सरलार्थ- चलती हुई चींटी सैकड़ों योजन की दूरी पार कर लेती है लेकिन नहीं चलता हुआ गरुड़ भी एक कदम भी नहीं चल पाता है अर्थात् अति लघु जीव भी कार्य करता रहे तो वह बहुत बड़ा कार्य कर देता है लेकिन बहुत बड़ा जीव भी ना चाहता हुआ छोटा सा काम भी नहीं कर पाता।
5-काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ।।
अन्वय- काकः कृष्णः पिकः कृष्णः। पिककाकयोः को भेदः? वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ।।
सरलार्थ- कौवा कृष्ण वर्ण का होता है अर्थात काले रंग का और कोयल भी कृष्ण वर्ण की होती है। कोयल और कौवे में क्या अंतर है- बसंत का समय आने पर कौवा कौवा होता है और कोयल कोयल होती है अर्थात् वसंत ऋतु आने पर दोनों के बोलने से उनकी पहचान हो जाती है क्योंकि कौवा कर्कश ध्वनि निकालता है और कोयल मधुर वाणी में आवाज करती है।