त्रयोदशः पाठः - विमानयानं रचयाम
(1) राघव! माधव! सीते! ललिते!
विमानयानं रचयाम।
नीले गगने विपुले विमने
वायुविहारं करवाम ||1||
सरलार्थः- राघव, माधव, सीता, ललिता (आओ हम) विमान की रचना करें। नीले, विशाल और निर्मल आकाश में वायुविहार करें।
(2) उन्नतवृक्षं तुङ्गं भवनं
क्रान्त्वाकाशं खलु याम।
कृत्वा हिमवन्तं सोपानं
चन्दिरलोकं प्रविशाम ||2||
सरलार्थ:- ऊँचे पेड़ को, ऊँचे घर को पार करके आकाश में निश्चय ही चलें। हिमालय को सीढ़ी करके चंद्रलोक में प्रवेश करें।
(3) शुक्रश्चन्द्रः सूर्यो गुरुरिति
ग्रहान् हि सर्वान् गणयाम।
विविधाः सुन्दरताराश्चित्वा
मौक्तिकहारं रचयाम ||3||
सरलार्थः- शुक्र, चंद्र, गुरु और सूर्य - सभी ग्रहों को गिने। अनेक सुन्दर तारों को चुनकर मोतियों का हार बनाएं।
(4) अम्बुदमालाम् अम्बरभूषाम्
आदायैव हि प्रतियाम।
दुःखित-पीडित-कृषिकजनानां
गृहेषु हर्ष जनयाम ||4||
सरलार्थ:- आकाश की शोभा बादलों की माला को लेकर ही वापस लौटें। दुःखित-पीड़ित किसान लोगों के घरों में ख़ुशी उत्पन्न करें।