(1) एकस्मिन् वने शृगालः बकः च निवसतः स्म। तयोःमित्रता आसीत्। एकदा प्रातः शृगालः बकम् अवदत्- मित्र! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।शृगालस्य निमन्त्रणेन बकः प्रसन्नः अभवत्। अग्रिमे दिने सः भोजनाय शृगालस्य निवासम् अगच्छत्। कुटिलस्वभावः शृगालः स्थाल्यां बकाय क्षीरोदनम् अयच्छत्।
सरलार्थ- एक जंगल में सियार और बगुला रहते थे। दोनों मित्र थे एक बार सुबह सियार ने बगुले से कहा- 'हे मित्र कल तुम मेरे साथ भोजन करो। सियार के निमंत्रण से बगुला प्रसन्न हो गया। अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के घर गया। कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले के लिए खीर परोसी।
(2) बकम् अवदत् च- मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादावः। भोजनकाले बकस्य चञ्चुः स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्। अतः बकः केवलं क्षीरोदनम् अपश्यत्। शृगालः तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत् शृगालेन वञ्चितः बकः अचिन्तयत्-
सरलार्थ- और बगुले से कहा- 'हे मित्र इस पात्र में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं।' भोजन के समय बगुले की चोंच थाली से भोजन लेने में समर्थ नहीं थी। इसलिए बगुला ने केवल खीर को देखा। सियार तो सारी खीर खा गया। सियार द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा-
(3) यथा अनेन मया सह व्यवहारः कृतः तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामिय्। एवं चिन्तयित्वा सः शृगालम् अवदत्-मित्र! त्वम् अपि श्वः सायं मया सह भोजनं करिष्यसि। बकस्य निमन्त्रणेन शृृगालः प्रसन्नः अभवत्।
सरलार्थ- 'जैसा इसके द्वारा मेरे साथ व्यवहार किया गया है वैसा मैं भी उसके साथ व्यवहार करूंगा।' इस प्रकार सोच कर उसने सियार से कहा- 'हे मित्र तुम भी कल शाम को मेरे साथ भोजन करोगे।' बगुले के निमंत्रण से सियार प्रसन्न हो गया।
(4) यदा शृृगालः सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्, तदा बकः सघड्ढीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्, शृगालं च अवदत्-मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव भोजनं कुर्वः। बकः कलशात् चञ्च्वा क्षीरोदनम् अखादत्। परन्तु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्।
सरलार्थ- जब सियार शाम को बगुले के घर भोजन के लिए गया तब बगुले ने संकुचित मुंह वाले घड़े में खीर परोसी और सियार से बोला- 'हे मित्र हम दोनों इस पात्र में साथ ही भोजन करते हैं।' बगुला घड़े से चोंच द्वारा खीर खा गया। परंतु सियार का मुंह घड़े में नहीं पहुंच सका।
(5) अतः बकः सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्। शृगालः च केवलम् ईर्ष्यया अपश्यत्। शृृगालः बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्।
सरलार्थ- इसलिए बगुला सारी खीर खा गया और सियार ने केवल ईर्ष्या से देखा। सियार ने बगुले के प्रति जैसा व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के प्रति वैसा व्यवहार करके बदला ले लिया।
उक्तमपि-
आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम्।
तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा।।
सरलार्थ- कहा भी गया है-
अपने बुरे व्यवहार का फल दुखदायी होता है इसलिए सुख चाहने वाले मानव के द्वारा अच्छा व्यवहार करना चाहिए।