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राजस्थान के एक छोटे से गाँव में, जहाँ रेत के टीले दूर-दूर तक फैले थे और सूरज की तपिश हर चीज़ को झुलसा देती थी, परी नाम की एक लड़की रहती थी। उसका नाम उसकी आँखों की चमक की तरह था, जो रेगिस्तान की नीली दोपहर में भी तारों की तरह टिमटिमाती थीं। विश्नोई परिवार से ताल्लुक रखने वाली परी, प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा रखती थी। वह जानती थी कि उसके पूर्वजों ने सदियों से पेड़ों और जानवरों की रक्षा की है, और वह भी उसी मार्ग पर चलना चाहती थी।
परी का गाँव सूखे और अभावों से जूझ रहा था। पानी की कमी और बंजर जमीन ने लोगों के जीवन को कठिन बना दिया था। लेकिन परी ने कभी हार नहीं मानी। वह जानती थी कि अगर प्रकृति को बचाया जाए, तो जीवन भी बचाया जा सकता है।
एक दिन, परी ने गाँव के बुजुर्गों से सुना कि पास के एक जंगल में दुर्लभ प्रजाति के पेड़ सूख रहे हैं। ये पेड़ न केवल गाँव के लिए ऑक्सीजन का स्रोत थे, बल्कि कई जानवरों का घर भी थे। परी ने निश्चय किया कि वह इन पेड़ों को बचाएगी।
उसने गाँव के बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें पेड़ों के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई। वे हर दिन सुबह जल्दी उठते, दूर के कुएँ से पानी लाते और पेड़ों को सींचते। उन्होंने पेड़ों के चारों ओर बाड़ लगाई ताकि जानवर उन्हें नुकसान न पहुँचा सकें।
शुरुआत में, लोगों ने परी और उसके साथियों का मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा, "रेगिस्तान में पेड़ बचाना? यह तो पागलपन है!" लेकिन परी ने किसी की परवाह नहीं की। वह जानती थी कि वह सही कर रही है।
धीरे-धीरे, पेड़ों में नई पत्तियाँ आने लगीं। जंगल फिर से हरा-भरा होने लगा। जानवरों की चहचहाहट से गाँव गूंजने लगा। परी और उसके साथियों ने न केवल पेड़ों को बचाया, बल्कि गाँव में उम्मीद की एक नई किरण भी जगाई।
एक दिन, एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् गाँव में आए। उन्होंने परी और उसके काम के बारे में सुना और उससे मिलने आए। परी ने उन्हें जंगल दिखाया, और पर्यावरणविद् उसकी लगन और साहस से बहुत प्रभावित हुए।
उन्होंने परी की कहानी को दुनिया के सामने रखा। परी रातोंरात एक हीरो बन गई। उसकी कहानी ने लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक किया। सरकार ने गाँव में पानी की व्यवस्था की और पेड़ों की रक्षा के लिए नए कानून बनाए।
परी ने साबित कर दिया कि एक छोटी सी लड़की भी बड़ी ताकत बन सकती है। उसने दिखाया कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो प्रकृति हमारी रक्षा करेगी। परी विश्नोई की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है, और याद दिलाती है कि रेगिस्तान में भी सपने खिल सकते हैं।