उर्मिला

शादी के बाद जब वो मेरी पत्नी बनकर मेरे घर आई थी तो कितनी खुश थी. पीहर को छोड़ने का गम था, पर एक भरे पूरे परिवार में उसे जैसे अपनो की कोई कमी ना थी. स्वयंबर में जब उसे देखा था, उसकी सुन्दरता शब्दो की ब्याख्या से परे थी. शुशोभित वस्त्रो और चमकदार गहनो से वह एक अप्सरा से कम नही लग रही थी. परिवारिक रस्मो में ब्यस्तता की वजह से उससे ठीक से बात भी नही कर पाता था. शील और शौम्य नारी की विवशता उसकी चूड़ियो कि खनखनाहट और पायलो की आवाजो से साफ पता चलती थी. पारिवारिक दायित्वो का निर्वहन करते करते मै अपने पति होने का दायित्व नही निभा सका. अभी कितने दिन हुये है हमारी शादी को, उसे घर पर अकेला छोड़ कर मै यहाँ आ गया. पता नही वो कैसे अपने दिन गुजार रही होगी.


"लक्ष्मण, लक्ष्मण", पहचानी हुई आवाज से लक्ष्मण की तन्द्रा टूटी. सर उठाकर देखा तो सामने सीता भाभी खड़ी थी.  

"जी भाभी माँ", लक्ष्मण ने कहा.

"कहाँ खो गये देवर जी", माता की बात सुनकर लक्ष्मण सोच में पड़ गये. अपने मन के विचार दबाकर सीता माता की ओर मुखातिब होकर बोले

"कुछ नही. बस थोड़ी सी नींद आ गई थी. कोई कार्य हो तो बताईये".

"नही कोई कार्य नही है, पर शायद तुम कुछ छिपा रहे हो?"

लक्ष्मण और तटस्थ होकर बोले, "नही भाभी माँ, कुछ नही छिपा रहा हूँ".

"हूँ!!!, वैसे मैने भी दुनियाँ देखी है, कभी कभी मन की बात पढ़ लेती हूँ. वैसे मुझे लगता है कि तुम उर्मिला के बारे में सोच रहे थे." सीता माँ ने मजाक करते हुये कहा.

"ना... ना.... हाँ....", लक्ष्मण की आवाज भरभरा गई. "हाँ, उसी के बारे में सोच रहा था. इतने दिन हो गये, कोई खबर नही, और आने वाले वर्षो में शायद ही कोई खबर मिले?"

"सो तो है. पर चाहो तो अभी घर जा सकते हो? मै आपके बड़े भैया से बात करती हूँ", सीता ने कहा.

"नही रहने दो, मै अपने भैया को अकेला नही छोड़ना चाहता?"

"पर उर्मिला का क्या? क्या उसे अकेला छोड़ना ठीक है?"

सीता माँ की बात सुनकर लक्ष्मण सोच में पड़ गये. मन अन्तर्द्वन्द में झूलने लगा. मन उथल पुथल होने लगा, भैया की प्रतिज्ञा, छोटे भाई का फर्ज, पति के कर्तब्य से दूर. ह्रदय विना अस्त्र के विदीर्ण होने लगा. मस्तिष्क में अनेको विचार दौड़ने लगे. अपने विवेक को नियन्त्रित कर अन्तत: लक्ष्मण ने अपने भाई के बचन पालन में सहायक बनने का निर्णय लिया.


यह एक विना संदर्भ का एक वार्तालाप है जो शायद ही सीता माँ व लक्ष्मण के बीच हुआ हो? संभावनाये बहुत है, पर प्रश्न यह है कि आखिर बनवास हुआ किसका था, (अ) राम जी का, (ब) सीता जी का, (स) लक्ष्मण जी का या फिर (द) उर्मिला का. रामायण में उर्मिला का चरित्र केवल राम जी के स्वयंबर में मिलता है जब लक्ष्मण जी से उनकी शादी होती है और फिर पूरी रामायण में उर्मिला का चरित्र पर्दे में रहता है. राम के बनवास के समय, सभी के संवाद है, पिता-पुत्र का, माँ-बेटे का, राम-सीता का, सीता-कौशल्या का, पर कही भी लक्ष्मण-उर्मिला का संवाद नही है. बचन माँगा कैकेई माँ ने, वचन दिया दशरथ जी ने, निभाया पुत्र राम ने, सीता साथ गई अपने पति के, लक्ष्मण ने चुना भाई का साथ, आखिर उर्मिला का ऐसा कौन सा दोष था कि उसे अपने पति से १४ वर्षो तक दूर रहना पड़ा. एक नवयौवना जिसने अभी अभी ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश किया है, क्यो उसे पति के प्यार से विमुख होना पड़ा? १४ वर्षो के बाद जब उसके पति पुन: अयोध्या वापस आयेंगें तो क्या वे अपनी प्रौढ हो चुकी पत्नी को उसी प्रेम की नजरो से देखेगें जैसे उन्होने उसे शादी के वक्त देखा था?


यद्यपि महाकाब्य मानवीय जीवन को उच्चकोटि का बनाने हेतु लिखे गये है, लेकिन वे प्रश्नमुक्त नही है. नायको का चरित्रचित्रण हमेशा से किया जाता रहा है, जिसको आधार मानकर मानव अपने जीवन को उज्ज्वल और चरित्रवान बनाने का प्रयत्न करते रहते है. नायको को नायक बनाने वाले लोग हमेशा ही अपना उचित स्थान नही पा सके.  रामायण में जितना उच्च कोटि का चरित्र राम जी का, सीता माता एवं लक्ष्मण जी का है, उर्मिला का चरित्र कही भी उनसे कम नही है. राम जी पुरुषोत्तम कहलाये क्योकि उन्होने अपने पिता के वचन के पालन हेतु राज्य त्याग दिया. सीता माता पतिव्रता नारी श्रेष्ठ कहलायी क्योकि उन्होने अपने पति का साथ कभी भी नही छोड़ा. लक्ष्मण भ्रात्रश्रेष्ठ कहलाये, क्योकि उन्होने अपने भाई का साथ देने के लिये राज सुख छोड़ दिया. पर उर्मिला न्याय ना पा सकी. सोचो रामयण कैसी होती यदि उर्मिला विद्रोह कर देती कि यदि उसका पति उसे छोड़ कर गया तो वो अपने प्राण त्याग देगीं? क्या होती रामायण यदि वो लक्ष्मण के कान भरती और कहती कि जाने दो राम को बन, तुम्हे राज्य मिलेगा, राज्य है तो सुख है? वास्तव में ये उर्मिला ही थी जिसका १४ वर्षो का बनबास हुआ था, ना कि राम जी को. आज इस कलियुग में राम मिल जाते है, सीता मिल जाती है, लक्ष्मण मिल जाते है बस उर्मिला नही मिलती है, शायद यह इसलिये है क्योकि रामायण में उर्मिला के चरित्र का वर्णन नही किया गया है.


धन्यवाद