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"पिता जी मुझे दूध दीजिये ना!" बाल मन से अश्वस्थामा ने हठ करते हुये अपने पिता द्रोणाचार्य से कहा. द्रोणाचार्य ने आटे को पानी में घोलकर अश्वस्थामा को देते हुये कहा, "पुत्र लो दूध पी लो". अश्वस्थामा ने जैसे ही एक घूँट पिया, तुरन्त पिता की ओर मुखातिब होकर बोला, "पिता जी मै जानता हू कि यह दूध नही है फिर भी आपने कहा है इस लिये मै इसे सत्य मानकर दूध समझ कर पी लेता हूँ"
अपने पुत्र के बचन सुनकर द्रोणाचार्य का मन ग्लानी से भर गया. अपनी गरीबी पर अब तरस नही गुस्सा आ रहा था. जीवन भर कभी भी दूसरो के आगे हाथ ना फैलाने का संकल्प करने वाले द्रोणाचार्य को अपने ही पुत्र द्वारा कही गई बात से इतना अघात पहुँचा कि उन्हे अपना ही संकल्प खोखला लगने लगा. "बहुत हुआ, कुछ बन्दोबस्त करता हूँ" सोचते हुये द्रोणाचार्य अपने सहपाठी द्रुपद के दरबार में पहुँचे और राजा से अपने लिये एक गाय माँगी. द्रुपद ने द्रोणाचार्य को पहचानने से मना कर दिया और उन्हे दरबार से बाहर कर दिया. द्रोणाचार्य अपमान का घूट पीकर वापस घर आ गये.
सालो बीत गये और वे अब कौरवो और पाण्डवो के गुरु बन कर उन्हे अस्त्र और शस्त्र विद्या सिखाने लगे. गरीबी मिट चुकी थी. सभी सुख और संशाधन उपलब्ध थे. जब सारे राजकुमार युद्ध कौशल में निपुण हो गये तो सभी राजकुमारो ने गुरू से गुरुदक्षिणा माँगी. द्रोणाचार्य का मन अभी भी अपमान से ब्यथित था उन्होने अर्जुन से कहा "मुझे राजा द्रुपद का सिर मेरे चरणो में झुका हुआ चाहिये.", अर्जुन ने अक्षरश: उनकी आज्ञा का पालन किया.
कहाँनी पुरानी है पर मुझे कुछ सिखा गई. जरूरी नही बचपन के दोस्त हमेशा मदद करे या याद रखे. गरीबी की अपनी परिभाषायेँ है. राजा और रंक में ना केवल अन्तर होता है बल्कि राजा यह अन्तर हमेशा रंक से बना कर रखता है. राजा का भी पराभाव होता है.
समय बदला, वक्त बदला किन्तु एक चीज अभी भी वैसी की वैसी ही है. और वह है "गरीबी". गरीबी की परिभाषायें बदल गयी पर गरीब वही के वही रहे. पढेलिखे गरीब, इमानदार गरीब, नैतिकता वाले गरीब और गरीबी वाले गरीब. कैसी भी परिभाषाये गढ़ लो और लोगो को उसमे फिट कर दो. गरीबी मिटाने के भी अलग अलग लोगो के अलग अलग तरीके है. कोई कहता है कि मुफ्त मे खाना दे दो. कोई कहता है कि मुफ्त का पैसा दे दो. कोई कहता है कि गरीबी की परिभाषा बदल लो. कोई कहता है कि गरीबो को रोजगार दो. कोई कहता है कि गरीबी हटाओ. कोई कहता है कि गरीबो को हटाओ. कोई कहता है कि केवल मै ही गरीबी हटा सकता हूँ और कोई कहता है कि गरीबी केवल मन की सोच है. किन्तु गरीबी एक वास्तविक और सतत परिस्थिति है जो सदैव इस दुनियाँ मे बनी रहती है. कितने भी जतन कर लो, इसे कोई भी नही मिटा सकता है. ८ अरब की आवादी के प्रत्येक ब्यक्ति के हिस्से में बमुस्किल ०.४६ एकड़ क्रषि योज्ञ जमीन आती है. और इस क्रषि योज्ञ जमीन मे दुनिया की किसी भी तकनीक का प्रयोग कर भर पेट भोजन करने के लिये अन्न नही उपजा सकते है. तो फिर भूख कैसे मिटेगी. बस फिर वही नियम, राजा रंक का हिस्सा मारे. समर्थवान गरीब को लूटे और अपना पेट भरे. लो जी गरीबी पैदा हो गई. गरीबी हटाना या गरीबी मिटाना एक मिथक है, जिसका प्रयोग कर सत्ता और पैसा दोनो कमाये जा सकते है पर गरीबी नही मिटाई जा सकती है.
इस कथन को हमेशा याद रखे और जब इस दुनियाँ से गरीबी मिट जाये तो मुझे जरूर याद दिलाना कि मैने गलत विचार लिखे थे. धन्यवाद.