कर्म

     एक बहुत पुराने निदेशक महोदय स्वर्गीय, डा. रफीस ह्रदय नाथ (Late Dr. Rafish Hraday Nath, DS & Ex Director) अपने रिसर्च के लिये एक बार जर्मनी गये थे. वहाँ वे अपने होटल से प्रतिदिन ट्रेन पकड़कर इंस्टीट्यूट जाते थे. संस्थान पहुचने मे देर ना हो जाये, इस लिये वे ट्रेन के आने से पहले स्टेशन पहुच जाते थे. भारत में अक्सर ट्रेने देर से आती थी और देर से पहुचती थी. सही समय में ट्रेन आ जाये या गंतब्य में पहुँच जाये तो यह एक चमत्कार से कम नही होता था. ट्रेन के इंतजार मे वे अक्सर समय से पहले ही पूँछताछ कार्यालय मे जाकर पूछ्ते कि उक्त ट्रेन कब आयेगी. कार्यालय मे बैठी लड़की मुस्कराके जवाब देती कि उक्त समय पर आयेगी. यह सिलसिला कई दिनो तक चला. एक दिन कार्यालय में बैठी लड़की झल्लाकर बोली, "क्या मिस्टर, तुम मुझसे रोज मजाक करते हो क्या?", यह सुनकर नाथ साहब बोले कि, "नही मिस, हमारे देश मे तो एक ट्रेन के आने का वक्त रोज अलग अलग होता है." यह बात सुनकर लड़की ने कहा, "मुझे नही पता, लेकिन हिटलर के समय से, कयामत आने तक यह ट्रेन रोज इसी नियत समय पर आयेगी और जायेगी".

      यह एक छोटा सा वर्तालाप है किन्तु एक विश्वास है कि हिटलर के समय मे जो अनुशासन बनाया गया है और समय पर कार्य करने की आदत है वो सदैव बरकरार रहेगी. यह सत्य है कि आज भी जर्मनी, समय में कार्य समाप्त करने में महारथी है. आज भी वहाँ ट्रेने समय पर आती जाती है. भारत में अभी भी ट्रेने लेट है. जर्मनी और जापान द्वतीय विश्व युध्य के बाद बिखरे तिनको को जोड़कर दुनियाँ की दूसरी और तीसरी अर्थब्यवस्थायें बनी है. वहाँ की बनी चीजे दुनियाँ की बेहतरीन वस्तुये है. गुणवत्ता और तकनीकी मे उनका कोई प्रतिद्वन्दी नही है.

       भारतीय दर्शन में "कर्म" की अलग अलग बुद्धिजीवियो ने अलग अलग ब्याख्या की है. पर सही ब्याख्या तो जर्मनी और जापानियों ने की. उनके तर्क में, कर्म, समय पर उच्च गुणवत्ता के साथ पूर्ण किया गया कार्य ही मनुष्य का कर्म है. काश यह बात हम भी सीख पाते. यहा तो कार्य को लटकने की परंम्परा है. कार्य जितने अधिक देर तक रूकेगा, काम कराने की रकम उतनी ही ज्यादा होगी. नई सरकार के साथ शायद कुछ सुधार हो, पर मेरे लिये तो यह किस्सा ही एक सबक है. 

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द्वारा - ह्रदय नाथ साहब के कुछ संस्मरण