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उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में करीब चार साल से लिव इन में रह रहे एक प्रशासनिक अधिकारी के लिए शुक्रवार आधी रात को पडरौना शहर का गायत्री मंदिर खुलवाया गया। इसके बाद दो एसडीएम की मौजूदगी में प्रशासनिक अधिकारी और उनके साथ लिव इन में रह रही युवती ने शादी की। इतना ही नहीं, शादी के बाद रात में ही रजिस्ट्री दफ्तर खुलवाकर शादी का रजिस्ट्रेशन भी कराया गया। पूरे इलाके में सुबह से ही यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। यह तो उनके जीवन का ब्यक्तिगत मामला है. लेकिन प्रशन यह है कि ऐसा कौन सा कारण था कि अचानक ऐसे शादी करनी पड़ी. इसके कई कारण हो सकते है और यह भी हो सकता है कि ४ वर्षो के लिव इन रिलेशन मे रहने के वाद वो कही और शादी करना चाहते हो?
प्रश्न यह है कि अधिकारी महोदय को इस परिणाम की अपेक्षा थी या नही. यदि अपेक्षा थी तो वे किस दम पर कही और शादी कर उस युवती का जीवन वर्वाद करने का साहस रखते थे और नही तो फिर उनकी शादी काफी पहले इस युवती से हो जानी चाहिये थी.
इस समाचार को पढते हुये मुझे दक्षिण की एक फिल्म का डायलाग याद आ गया. जब अपने पिता की म्रत्यु के बाद लंदन से लौटे उसके बेटे ने सत्ता संभाली तो एक पत्रकार ने उससे पूँछा - "जब आप अपने शपथ ग्रहण समारोह मे शुद्ध अंत:करण शब्द का ठीक से उच्चारण नही कर सकते है तो आप सही निर्णय कैसे ले सकते है?" तो उस नायक ने जवाब दिया - "अच्छा कार्य करने के लिये शब्द का उच्चारण नही ब्यक्ति मे शुद्ध अंत:करण होना चाहिये". शायद यही बात पढा लिखा तबका भूल गया है. पैसा और शक्ति को सर्वार्थ मानने वाला विद्व पुरूष नैतिकता को किताबी शब्द मानता है.
महर्षि वशिष्ठ श्री राम के राज गुरू थे. महर्षि सदैव श्री राम जी को शाशन करने के तरीके और प्रजा पालक होने का ज्ञान देते थे. चाहते तो वे खुद राज्य कर सकते थे पर "नैतिकता" जिसे उन्होने अपने धैर्य, अनुशाशन, संयम और कर्म से पाया था, उसे छोड़ना इतना आसान नही था. छत्रपति शिवा जी ने तो अपना सम्पूर्ण राज्य अपने गुरू के चरणो मे रख दिया था और उनके गुरू ने शिवा जी को राज्य दान मे देकर उसका ठीक से पालन करने का आदेश दिया था.
यह सत्य है कि उत्तर प्रदेश मे प्रत्येक वर्ष केवल २० से ३० एस डी एम बनते है जब कि १० लाख से अधिक अभ्यर्थी परीक्षा मे बैठते है. ज्ञान की ताकत से प्रशाशनिक पद पर पहुँचना तो आसान है किन्तु उस ऊँचाई पर बने रहना बहुत कठिन है. एक उच्च जिम्मेदार पद पर बैठा ब्यक्ति कैसे "नैतिकता" को किनारे लगा सकता है. कोई क्यो विश्वास करेगा कि जो ब्यक्ति अपने जीवन मे उच्च मूल्यो को नही स्थापित कर सकता है वो कैसे १० लाख की रिश्वत को नजरंदाज कर सकता है. भोपाल हनी काण्ड सबके सामने है जहाँ ५८ साल का बूढ़ा अधिकारी अपनी पुत्री के उम्र की छात्राओ के साथ "अनैतिक" कार्य करते हुये पाया गया. धैर्य रखिये "नैतिकता" अभी और गर्त मे जाने वाली है????