औकात

शेरशाह सूरी से हार कर हुमायूँ थका हारा ईरान की तरफ जा रहा था। रास्ते में उसका भूख और प्यास से बुरा हाल था।  रास्ते में उसे एक चमड़े का काम करने वाला ब्यक्ति मिला। उसने उससे पीने के लिये पानी माँगा। उस ब्यक्ति ने हुमायूँ को नही पहचाना फिर भी उसे पानी पिलाया। हुमायूँ ने उससे कहा कि यदि मैं जिन्दा रहा तो इस अहसान को जरूर चुकाऊगाँ।  कुछ सालो के बाद हुमायूँ ईरान के बादशाह की मदद से दिल्ली का राजा बन गया। एक दिन उसकी मुलाकात उसी ब्यक्ति से हुयी। हुमायूँ ने उसे पहचान कर उसका अहसान चुकाने की सोची।  हुमायूँ ने उसे एक दिन के लिये राजा बना दिया. वह ब्यक्ति जैसे ही राजा बना, उसको अहंकार आ गया। उसने आदेश दिया कि आज से चमड़े के सिक्के चलाये जायेगे जिनकी कीमत चाँदी के रूपये के बराबर होगी। अगले दिन हुमायूँ फिर राजा बना। उसे पता चला कि उसके राज्य के सभी लोगो ने अपना कर चुकता कर दिया है। हुमायूँ बड़ा खुश हुआ किन्तु उसे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ की सभी लोगो ने अपना कर चमड़े के सिक्को मे चुकता किया है।


निष्कर्ष : किसी भी ब्यक्ति को उसकी औकात से ज्यादा विना मेहनत के कभी भी नही मिलना चाहिये|