अधीरता

हिन्दू दर्शन में मनुष्य के चार पुरुषार्थ है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष.  चार दुश्मन है - लोभ, क्रोध, मोह, चिन्ता. दो इच्छाये जो कभी पूरी नही हो सकती है - ब्यसन और वासना. ये दोनो मनुष्य को नर्क का भागी बनाती है. धैर्य और संयम ऐसे दो गुण/गहने है जिनका अर्जन सामान्य पुरुषो के पुरुषार्थ में नही है. धैर्य और संयम का दुश्मन अधीरता है. इन सबको आपस में जोड़ने का कार्य मंत्र करते है.


हिन्दू धर्म ग्रंथो में मंत्रो का बहुत विशिष्ठ स्थान है. मंत्र ऊर्जादाई है. मंत्र शक्ति दाता है. मंत्र हमारी आत्मा को परमात्मा से जोड़ते है. मंत्र कुछ शब्द नही है, बल्कि जीवन का सार है. ये ईश्वरीय शब्द है जो मनुष्य को श्रेष्ठ जीवन हेतु उपलब्ध कराये गये है. मंत्र मनुष्य के जन्म से शुरू होकर म्रत्यु पश्चात तक जुड़े रहते है.  मंत्र ऊर्जा को नियन्त्रित करने के शब्द है जिनका सही उच्चारण आवश्यक है. मंत्र मन को शान्त करने का माध्यम है. मंत्र हमें ब्यस्त रखते है. मंत्रो के जाप से उत्पन्न ऊर्जा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होती है. मंत्र मन के विचलन को रोकते है. मंत्रो से हम अपने चित्त को स्थिर रख सकते है.


प्रश्न यह है कि यदि मंत्र इतने शक्तिशाली है तो फिर इनका जादू क्यो नही दिखता. मै इस प्रश्न से सहमत नही नही हूँ. जादू दिखता है पर हम देखना नही चाहते है. चलो इस पहेली को कुछ उदाहरण से समझते है. एक विद्यालय में एक विद्यार्थी को संस्क्रत कंठस्थ करने में समस्या है. फिर क्या? शिक्षक ने उसे याद कर दोहराने के लिये कहा. विद्यार्थी ने कुछ एक बार पाठ दोहराया और फिर बोला, "मुझे यह पाठ कब तक याद होगा?". शिक्षक के सामने दो उत्तर है, १. "आप रहने दो आपको नही याद होगा". (१) "यदि आप सायं तक इस पाठ को ५१ बार दोहरायेगे तो यह आपको जरूर याद हो जायेगा". और फिर शिक्षक उसे एक दोहा सुनाता है, "करत करत अभ्यास से....... ". समस्या यह नही है विद्यार्थी कमजोर है या शिक्षक अयोज्ञ. बल्कि समस्या बच्चे की अधीरता है. उसके इस कमजोरी को हमने उम्मीद और बारम्बारता से दूर करने की कोशिश की. इस उम्मीद से कि सायं तक ५१ बार इस पाठ को पढ़ने से मुझे पाठ याद हो जायेगा, उसकी अधीरता समाप्त हो गई और वह अपने पाठ को मन से याद करने लगा. 


यदि इस विद्यार्थी को किसी रोगी से विस्थापित कर दे तो आप उस रोगी को कैसे समझाओगे कि आप चार दिन या १० दिन में स्वस्थ हो जायेगे. शायद इतना समय वह इन्तजार ना कर सके. किन्तु यदि हम उसे उम्मीद दे, जैसे कि यदि आप इस १०१ रुद्राक्ष की माला को १ लाख १ बार गायत्री मंत्र से जपेगे तो ठीक हो जायेगे. अब रोगी की उम्मीद और १ लाख १ बार माला के जाप से १० दिन कैसे निकल जायेगे, पता ही नही चलेगा.  मुझे याद है कि बचपन में चोट लगने पर मेरे दादा जी और मामा जी मंत्र से बहते खून को रोक देते थे. यह बैज्ञानिक तौर पर सिद्ध है कि यदि चोट के स्थान को ५ से १० मिनट तक दबा कर रखे तो खून बहना बंद हो जाता है. किन्तु एक ५-६ वर्ष का बालक इतने वक्त का इंतजार नही कर सकता, सो उसे उम्मीद देने के लिये कई बार मंत्र पढकर ५-१० मिनट गुजारे जाते है ताकि बालक की अधीरता कम की जा सके.