फिर वही ब्रूट्स

वर्ष २००० में यू पी बोर्ड में अग्रेंजी साहित्य में जूलियस सीजर नाम का नाट्य साहित्य होता था. जिससे परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते थे. जूलियस सीजर रोम का महान शासक था. उसने रोम राज्य की सीमाओ का चारो दिशाओ मे बिस्तार किया था. उसकी गणना इतिहास के महान शासको में की जाती है. जैसा कि विदित है कि हर राजा के कुछ मित्र होते है और कुछ शत्रु. कभी कभी पारिवारिक ब्यक्ति और रिस्ते ही शत्रु होते है. राजनीतिक महत्वाकाँक्षाये दोस्त को भी दुश्मन बना देती है. इसी प्रकार जूलियस सीजर के भी मित्र थे जिनमे ब्रूट्स मुख्य था और सीजर का मुख्य विश्वासपात्र.  अपनी महत्वाकाँक्षाओ के चलते उसके अपनो ने सीजर को मारने का षडयंत्र रचते है. और इस षडयंत्र को प्रजा हित में बताने के लिये वे ब्रूट्स को अपनी तरफ मिलाते है. इसके लिये छ्ल और कपट का रास्ता चुना जाता है. अंतत: सीजर की हत्या हो जाती है और रोमन साम्राज्य कई भागो मे बट कर कमजोर हो जाता है. अब प्रश्न यह है कि ब्रूट्स गलत था य सही. कुछ लोग उसके पक्ष मे खड़े है और कुछ उसे देशद्रोही मानते है. चलो यह तो इतिहास हैं. कुछ नई बाते हो जाये.


१९४० का दौर था. दुनियाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी थी. काँग्रेस ने अग्रेजी शासन को भारत आजाद करने के आश्वासन पर द्वितीय विश्वयुद्ध मे समर्थन करने का भरोषा दिया. गाँधी जी छुआछूत के विरुद्ध "हरिजन" मुहिम चला रहे थे जिसका कुछ ब्रह्मण नेता विरोध कर रहे थे. मुश्लिम लीग पाकिस्तान के माँग पर अड़ा था. और महात्मा देश को एक बनाये रखने की कोशिश कर रहे थे. द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ. देश के आजादी की घोषणा होनी थी. माउन्टबेटन योजना लागू की गई और यह निश्चित हो गया की देश के दो टुकड़े किये जायेगें और साथ ही साथ देशी रियासतो को भारत या पकिस्तान से विलय या स्वतन्त्र रहने की छूट दे दी गयी. देश बटा, पूर्वी बंगाल मे दंगे भड़के और हजारो लोगो की मारकाट हुयी. सिखों का पश्चिमी पंजाब मे कत्लेआम हुआ. किन्तु इस दौरान और भी महत्वपूर्ण घटनायें हुयी. गाँधी जी बंगाल मे दंगे शान्त कराने के लिये पद यात्रा कर रहे थे. अंबेडकर जी संविधान लिख रहे थे. लौह पुरुष देशी रियासतो के एकीक्रत करने मे ब्यस्त थे और नेहरू जी सत्ता हस्ताँतरण की औपचारिकताये पूरी कर रहे थे. ध्यान देने योज्ञ बात यह है कि आर एस एस उस समय गैर राजनीतिक दल था जो बंगाल मे गाँधी जी की सुरक्षा मे लगा था. तभी एक निर्णय लिया गया. पाकिस्तान की मदद के लिये 55 करोड़ रुपये देने की महात्मा ने दबाब बनाया और तब जब खुद भारत का बजट 171.15 करोड़ रुपये से कम था और हमारी करोणो की आबादी भुखमरी का शिकार थी. 


और एक दिन नाथूराम गोडसे ने गाँधी की हत्या कर दी. अब प्रश्न यह है कि कारण क्या थे? क्या गोडसे गाँधी जी से शत्रुता रखता था या फिर वह ब्रूट्स की तरह गलत फहमी का शिकार था. आखिर इस भरतीय ब्रूट्स के पीछे कौन सी ताकते थी और उनकी क्या महत्वाकाँक्षाये थी? आर एस एस का कोई भी नेता काँग्रेस के आगे कही नही ठहरता था तो उसकी राज्य करने की कोई संभावनाये नही थी. क्या गोडसे मानता था कि जब देश में भुखमरी है तब किसी दूसरे देश की मदद करना सही नही है और वह षडयंत्रकारियो के हाथो की कठपुतली बन गया. या कुछ लोग चाहते थे कि गाँधी जी अब राजनीत मे हस्तक्षेप करना बंद करे और जब उन्हे इसकी उम्मीद नही रही तब उन्होने एक ब्रूट्स को गाँधी जी को रास्ते से हटाने कि लिये चुना. कई दौर की जाँचे हुयी पर अभी तक यह नही पता लगा की इस भारतीय सीजर की हत्या करने वाले ब्रूट्स के पीछे किस महत्वाकाँक्षी ब्यक्ति का हाथ था. हो सकता है कि आप में से कोई जानता हो, तो क्रपया उसके बारे में और जाने. आखिर संभावना तो कुछ भी हो सकती है.


जय हिन्द, जय महात्मा !!!!