Visit My Youtube Channel for Additional Resources....
"तुम्हारी इतनी शिकायतो का मेरे पास कोई जवाब नही है" मैने उसके ढेर सारे प्रश्नो के जवाब में कहा. पर मेरी बात को नजरऽंदाज कर वह अपने प्रश्नो की बौछार करती रही. जब प्रश्नो की चोट सहनशीलता के परे हुई तो मैने झल्लाकर कहा, "इतनी शर्तो के साथ कोई जीना भी नही चाहेगा जितनी शर्ते मुझपर तुमसे प्रेम करने की लगाई गई". शायद उसे इस उत्तर की अपेक्षा नही थी. मेरे झल्लाहट भरे उत्तर को सुनकर वह थोड़ा शान्त हुई. असहज और अनुत्तरित शब्दो के बीच एक सन्नाटा छा गया. थोड़ी देर बाद हम अपने अपने घर की तरफ चल दिये.
मुझे एक फिल्म का डायलाग याद है,
"ये लो ५ लाख और दूर हो जाओ मेरी बेटी की जिन्दगी से"
"ये मेरे प्यार की कीमत नही है".
"तो ये लो खाली बैग और भर लाओ इस बैग मे ५ लाख रुपये".
दोनो परिस्थितिया ही बिकट थी. प्यार और पैसा कमाना इतना आसान नही था. दोनो समय के साथ चलते है. प्यार को उम्र खा जाती है और पैसा उम्र को. ५ लाख कमाते कमाते फिल्म का नायक जब घर लौटता है तब तक उसके प्यार पर कोई और डाका डाल चुका होता है.
"कितनी समानता है इस डायलाग की मेरे जीवन से. शायद यह मेरे लिये ही लिखा गया था". आखिर इतनी बड़ी शर्त क्यो. और शर्त थी तो क्यो विश्वास नही किया? क्यो इन्तजार नही किया? शायद यही दुनियाँ का दस्तूर है. हमेशा सबल डाल पकड़ कर चलो. मेरी पिछली जिन्दगी की तस्वीरे मेरी आँखो के सामने इस तरह आई जैसे यह अभी कल की ही बात हो. मेरा और उसका घर पास पास ही था. पारिवारिक रिश्तो के बीच हमेशा आना जाना होता था. मुझे तो याद नही पर माँ कभी कभी छेड़ती थी, "तेरी शादी बगल वाले घर की लड़की से करवाऊगी. फिर जब वह तुझे पीटेगी तब तेरी अकल ठिकाने आयेगी". कच्ची उम्र मे इन शब्दो का कोई महत्व नही था, पर माँ की बातो से एक आकर्षण जरूर लगता था. धीरे धीरे पता नही कब आकर्षण प्यार मे बदल गया. माँ की हिदायते भी बदल गई, "खबरदार अगर किसी लड़की को छेड़ा. हाथ पैर तोड़ के घर से बाहर निकाल दूँगी. अगर किसी लड़की की तेरी वजह से बदनामी हुयि तो तेरी आँखे निकाल लूँगी". समझ नही आता था कि अखिर माँ चाहती क्या थी? बस माँ हाथ पैर ना तोड़े, इस डर से कभी भी उसे अपने मन की बात नही कह सका. पर यह सच था कि वे उसे अपनी बहूँ के रूप मे जरूर देखती थी. उम्र के साथ मेरी सोच और समझ में परिवर्तन आया. एक दिन यू ही बातो-बातो मे दोनो परिवारो की महिलाओ ने रिश्ते की बात छेड़ दी.
"मेरी बिटियाँ से अपने बेटे की शादी कर देना. बस कमाने लगे." उसकी माँ ने कहा.
"पता नही क्या करेगा. ठीक से पढता तो नही है." माँ बोली.
तभी उसकी दादी बोली, "अरे नही, मै तो अपनी नातिन की शादी किसी अफसर से करवाऊँगी. अगर तेरे छोरे को शादी करनी है तो ठीक-ठाक नौकरी करे".
"हाँ अम्मा, पता नही आगे क्या करेगा. वैसे भी आजकल बेकारो की शादी कहाँ हो रही है?", माँ ने प्रतित्युत्तर मे कहा.
"चपरासी वपरासी ना बने", उसकी माँ ने फिर से टोका.
यह बार्ता बदस्तूर घण्टो चलती रही. लेकिन इसका एक ही साराँश था जो मेरे सामने था, कि मेरे सामने फिल्म वाला खाली बैग पटक कर कहा गया है, "जा भर कर ला एक अच्छी सरकारी नौकरी इस बैग मे, या फिर भूल जा अपनी मोहब्बत को". १२५ करोड़ की आवादी मे एक अदद नौकरी मिलना किसी अजूबे से कम नही है. लेकिन उसमे भी ऐसी नौकरी की शर्त, शायद ही किस्मत से मिले.
इस दुनियाँ के प्रत्येक ब्यक्ति के जीवन का एक उद्देश्य होता है. बिना उद्देश्य कोई भी कार्य सफल नही होता है. बस फिर क्या? अपना उद्देश्य पाने कि लिये, मै भी १२५ करोड़ लोगो के बीच कूद गया. समय बीतता रहा. कभी कभी उसके रिश्ते होने की खबरे भी मिलती रही. पर बिना बिचलित हुये अर्जुन की तरह मछली की आँख भेदने की कोशिश करता रहा. बड़ी कठिनता से एक सफलता मिली. पर जैसा कि मैने पहले ही कहा था, जरूरी नही कि उद्देश्य मे सफल हो. मेरी खुशी से पहले वह किसी और की हो चुकी थी.