टोपी में छेद

     नवाब वाजिद अली शाह के बाद लखनऊ में अग्रेंजी शाशन के दौरान कई नवाब बने. कहने को तो नवाब थे, पर लखनऊ के बाहर उनका एक सिक्का तक नही चलता था. नवाब नवाबी थे. शौक भी अजीब थे. प्रेसीडेंसी की अनुमति के बिना लखनऊ छोड़ने की भी मनाही थी. पर शान और रुतबा बरकार था. शायरी और मुजरो के शौकीन, शायरो और नचनियों पर मोतियो की बारिश करने वाले नवाबो को लखनऊ के बाहर आमजन की स्थिति के बारे में तनिक भी ज्ञान ना था. उनके शौक का फायदा कुछ अंग्रेज लोग भी उठा लेते थे. कभी कभी वे भी टूटी फूटी शायरी कर नवाबो की जेबे ढीली करवा लेते थे. उन दिनो लखनऊ नवाबो के यहाँ हिन्दू दरबारी भी होते थे. 

     लखनऊ के एक नवाब को अपनी नवाबी टोपी को उँगली में घुमाने का बड़ा शौक था. दरबार में जब भी खुश होते, सर से टोपी उतारकर अपनी उँगली में लगाकर नचाना शुरू कर देते. अंग्रेज दरबारी उनकी इस कला की जितनी प्रशंसा करते, उनकी उँगली उतनी ही तेजी से हिलती. धीरे धीरे टोपी के एक सिरे पर छेद हो गया पर नवाब जी का शौक यथावत बरकरार रहा. एक दिन उन्होने अपने दरबार में पूछा, बताओ मेरा राज कैसा है. सभी दरबारियों ने अपनी काब्य और चाटुकारिता का पूर्ण प्रयोग कर उचित उपहार लिये, किन्तु उनके खजाँची ने कहा कि, "नवाबेआलम, टोपी में छेद हो गया है". नवाब साहब को ये बिल्कुल नाकाबिले बरदास्त था. "नवाबेआलम की शान में गुस्ताखी!" सभी दरबारी जोर से चिल्लाये. "इस मूर्ख का सर कलम कर दिया जाये." पर नावब साहब ने उसकी पिछली सेवा का ख्याल रखते हुये केवल कैदखाने में डालने का हुक्म दिया.

     यह कहानी सच है बस ऐतिहासिक किरदार नही है.  इतिहास फिर वहीं पर है. नई शिक्षा नीती का दरबार है. बी एस ए साहब नवाब है, ठेकेदार अंग्रेज, शिष्य आमजन और शिक्षक दरबारी.  नवाब साहब को खुद नही पता कि शिक्षा आगे बढ़ेगी कैसे, क्योकि ८०% से ज्यादा तकनीकी पहलू है. दरबारी केवल अपने तक सीमित है. उन्हे बस नये/पुराने मोतियो की माला चाहिये. खजाँची सच बोले तो नवाब का कोपभाजक बने. झूठ बोले तो अपने कर्तब्य से बिमुख. वह बस शिक्षक बनने का प्रयास कर रहा है और जैसे ही मौका मिलेगा, दूसरा दरबार ढूढ़ लेगा. अंग्रेज अपनी टूटी फूटी पंजीरी और दाल का पूरा पूरा ईनाम ले रहे है. आमजन फिर वही खड़ा है.  राय बहादुर ने हुक्म दिया, शिक्षक बनना, आई ए एस बनने से कठिन होगा. आमजन क्यो पागल होगा, कम पढ़कर आई ए एस ही बनेगा, शिक्षक नही.